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परस्पर समायोजित न हो पाने के कारण इस गच्छ की गुरु-परम्परा की एक अविच्छिन्न तालिका को संगठित कर पाना असम्भव सा लगता है। (ग) अभिलेखीय साक्ष्य
___ चन्द्रकुल (चन्द्रगच्छ) से सम्बद्ध अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण निम्नानुसार है। जैसा कि लेख के प्रारम्भ में कहा जा चुका है अकोटा से प्राप्त कुछ धातुप्रतिमाओं पर उत्कीर्ण अभिलेखों में भी इस कुल का उल्लेख मिलता है । प्राध्यापक उमाकांत पी० शाह ने इनका काल प्रतिमाशास्त्रीय अध्ययन और लिपि के आधार पर ईस्वी सन् की छठी शताब्दी से ईस्वी सन् की १० वीं शताब्दी तक निर्धारित किया है। इनका विवरण इस प्रकार है :
अकोटा से प्राप्त चन्द्रकुल का उल्लेख करने वाला प्रथम लेख जीवन्तस्वामी की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । शाह महोदय ने इसकी वाचना निम्नानुसार दी है :
१. ॐ देवधर्मोयं जिवंतसामी २. प्रतिमा चद्र (चन्द्र) कुलिकस्य ३. नागीस्वरी श्राविकस्या
प्रतिमाशास्त्रीय अध्ययन के आधार पर उन्होंने इस लेख को ईस्वी सन् की छठी शताब्दी के मध्य का माना है।
चन्द्रकुल का उल्लेख करने वाला द्वितीय अभिलेखीय साक्ष्य भी वहीं से प्राप्त एक जिनप्रतिमा पर उत्कीर्ण है। शाह ने इसे ई० सन् ६०० से ६४० के मध्य का बतलाया है। लेख का मूलपाठ निम्नानुसार है:
१. ॐ देवधमय (धर्मोयं) ॥चद (न्द्र) कुलिकस्य।। ९. सिहजि श्रा (व) स्य ।
अकोटा से ही प्राप्त इसी काल की पार्श्वनाथ की एक प्रतिमा पर भी इस कुल का उल्लेख मिलता है। शाह" ने इस लेख का पाठ दिया है, जो इस प्रकार है :
१. देवधर्मोयं चन्द्रकुले दुग्गि २. णि श्राविकया रथवसति ३. काया
अकोटा से प्राप्त पार्श्वनाथ की एक अष्टतीर्थी धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख में भी इस कुल का उल्लेख मिलता है। उन्होंने इस लेख को प्रतिमाशास्त्रीय अध्ययन के आधार पर ई० सन् की १० वीं शती के अंतिम चरण और ११ वीं शती के प्रथमचरण के बीच का माना है ।२८ लेख का मूलपाठ इस प्रकार है :
खण्ड १९, अंक ४
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