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.: । ॐ चन्द्रकुले मोढगच्छेनिन्नट श्रावकस्य - इस लेख के आधार पर यह कहा जा सकता है कि मोढगच्छ भी चन्द्रकूल की ही एक शाखा के रूप में अस्तित्व में आया।
यद्यपि उक्त चारों प्रतिमालेखों में चन्द्रकुल के किसी आचार्य या मुनि का उल्लेख नहीं मिलता, फिर भी उनसे इस कुल की प्राचीनता सिद्ध होती है।
चन्द्रगच्छीय मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित कुछ जिन प्रतिमायें प्राप्त हुई हैं। इन पर वि० सं० १०३२ से १५५२ तक के लेख उत्कीर्ण हैं । इनका विवरण इस प्रकार है : क्रमांक संवत् तिथिमिति आचार्य का नाम लेख का स्वरूप प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ १. १०३२
शीलगुणसूरि पार्श्वनाथ की धातु की श्री कुमरसिंह हलनं० पूरनचन्द नाहर-संपा० प्रतिमा का लेख ४६, इण्डियन मिरर जैन लेख संग्रह
स्ट्रीट कलकत्ता भाग १, लेखांक ३८६ २. ११८२ ज्येष्ठ वदि ६ चक्रेश्वरसूरि परिकर की गादी का जैन मंदिर, देरणा मुनि जयन्तविजय-संपा० बुधवार लेख
अर्बुदाचलप्रदक्षिणा जैन लेखसंदोह (आबू-भाग ५)
लेखांक ६३६ ३. १२२६ आषाढ़ सुदि ९ षण्डगसूरि महावीर की प्रतिमा गणधर की देव- मुनि कांतिसागर-संपा० गुरूवार
का लेख
कुलिका जिनेन्द्र ढूंक, शत्रुञ्जय वैभव शत्रुञ्जय
लेखांक ६
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तुलसी प्रज्ञा