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________________ अभयदेवसूरि प्रसन्नचन्द्रसूरि मुनिरत्नसूरि श्रीचन्द्रसूरि यशोदेवसूरि __ देवेन्द्रसूरि (वि० सं० १२९८/ई० सन् १२४२ में उपमितिभवप्रपंचकथासारोद्धार के रचनाकार) ६, पार्श्वनाथचरित-यह चन्द्रगच्छीय रविप्रभसूरि के शिष्य विनयचन्द्रसूरि की कृति है। यह ६ सर्गों में विभाजित है, इसमें ४९८५ श्लोक हैं। रचना के अन्त में प्रशस्ति के अन्तर्गत रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है : शीलगुणसूरि मानतुंगसूरि रविप्रभसूरि नरसिंहमूरि नरेन्द्रप्रभसूरि विनयचन्द्रसूरि (पार्श्वनाथचरित के रचनाकार) यद्यपि रचनाकार ने अपनी इस कृति में रचनाकाल का उल्लेख नहीं किया है, फिर भी विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर इसे वि० सं० की १४ वीं शती के प्रथम चरण की कृति माना जा सकता है। ८. समरादित्यसंक्षेप ----यह आचार्य हरिभद्रसूरि द्वारा रचित समराइच्चकहा (प्राकृत भाषामय) का संस्कृत भाषा में रचित छंदोबद्धसार है जिसे चन्द्रगच्छीय कनकप्रभसूरि के विद्वान् शिष्य प्रद्युम्नसूरि ने वि० सं० १३२४/ईस्वी सन् १२५८ में रचा है। प्रद्युम्नसूरि ने अनेक ग्रन्थों का संशोधन किया । कृति के अन्त में इन्होंने अपनी गुरु-परम्परा और रचनाकाल आदि का विवरण दिया है, जो इस प्रकार है : तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524578
Book TitleTulsi Prajna 1994 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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