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( प्रथम ) हुए ।
५. उपदेश कन्दलीटीका -- यह चन्द्रगच्छीय हरिभद्रसूरि के शिष्य बालचंद्रसूरि द्वारा रची गयी है । इनके द्वारा रची गयी कुछ अन्य कृतियां भी मिलती हैं, जैसे वसन्तविलासमहाकाव्य, विवेकमंजरीवृत्ति, करुणावज्रायुधनाटक आदि । उपदेशकन्दलीटीका की प्रशस्ति" में टीकाकार ने अपनी गुरु-परम्परा का विस्तृत विवरण दिया है, जो इस प्रकार है :
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वीरभद्रसूरि
खण्ड १९, अंक ४
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प्रद्युम्नसूरि (तलवाटक के राजा के उपदेशक )
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चन्द्रप्रभसूरि (जिनेश्वर की एक प्रभावी स्तुति के रचनाकार)
धनेश्वरसूरि
देवसूरि
देवभद्रसूरि
६. उपमितिभवप्रपंचकथासारोद्धार - चन्द्रगच्छीय देवेन्द्रसूरि द्वारा संस्कृत भाषा में रचित यह कृति सिद्धर्षि के उपमितिभवप्रपंचा कथा ( रचना - काल वि० सं० ९६२ / ईस्वी सन् ९०६ ) का संक्षिप्त रूप है । इसकी प्रशस्ति के अन्तर्गंत ग्रन्थकार ने अपनी लम्बी गुर्वावली दी है और रचनाकाल का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है :
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भद्रेश्वरसूरि
हरिभद्रसूरि
शांतिसूर |
देवेन्द्रसूरि
भद्रेश्वरसूरि
अभयदेवसूरि
हरिभद्रसूरि T बालचन्द्रसूरि
( वि० सं० १२९६ / ई० सन् १२४० के पूर्व उपदेशकन्दलीटीका के रचनाकार)
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