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चन्द्रगच्छीय श्रीचन्द्रसूरि द्वारा प्राकृत भाषा में रचित सणंकुमारचरिय है इसकी प्रशस्ति में ग्रन्थकार ने अपनी गुरु-परम्परा, रचनाकाल आदि का विवरण दिया है, जो इस प्रकार है :
सर्वदेवसूरि
जयसिंहसूरि
चन्द्रप्रभसूरि
देवेन्द्रसूरि
यशोभद्रसूरि श्रीचंद्रसूरि यशोदेवसूरि श्रीचंद्रसूरि जिनेश्वरसूरि (प्रथम) वि०
(द्वितीय) सं० १२१४ में सनत्कुमारचरित
के रचनाकार इसी प्रकार पूर्णिमापक्षीय विमलगणि द्वारा रचित दर्शनशुद्धिवत्ति" (रचनाकाल वि० सं० ११८१/ईस्वी सन् ११२५) की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि पूर्णिमागच्छ या पूर्णिमापक्ष के प्रवर्तक तथा विमलगणि के प्रगुरु चन्द्रप्रभसूरि चन्द्रकुल के सर्वदेवसूरि के प्रशिष्य तथा जयसिंहसूरि के शिष्य थे । इस प्रशस्ति में दी गयी गुरु-परम्परा इस प्रकार है :--
सर्वदेवसूरि
जयसिंहसूरि चन्द्रप्रभसूरि (पूर्णिमापक्ष के प्रवर्तक तथा
दर्शनशुद्धि के रचनाकार) धर्मघोषसूरि
विमलगणि (वि० सं० ११८१/ई० सन् ११२५
में दर्शनशुद्धिवृत्ति के रचनाकार) उक्त दोनों प्रशस्तियों से प्राप्त गुर्वावली से स्पष्ट होता है कि उनमें प्रथम दो नाम सर्वदेवसूरि और जयसिंहसूरि समान है तथा जयसिंहसूरि के एक शिष्य चन्द्रप्रभसूरि से पूर्णिमागच्छ अस्तित्त्व में आया एवं द्वितीय शिष्य देवेन्द्रसूरि की शिष्य मंडली में सनत्कुमारचरित के रचनाकार श्रीचंद्रसूरि ३२२
तुलसी प्रज्ञा
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