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रत्नप्रभसूर
जयसिंहसूर
प्रद्युम्नसूर ( प्रथम )
चन्द्रप्रभसूर
धनेश्वरसूरि
शांतिसूरि
देवभद्रसूरि
देवानंदसूर
परमानन्दसूरि
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बालचंद्रसूरि
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प्रद्युम्नसूर (द्वितीय)
(वि० सं० १३२४ / ई० सन् १२५८ में समरादित्यसंक्षेप के रचनाकार)
वि० सं० १००५/ई० सन् ९४९ में रचित मुनिपतिचरित के कर्त्ता जम्बूनाग और वि० सं० २०२५ / ई० सन् ९६९ में रची गयी जिनशतक के रचनाकार जम्बूकबि भी स्वयं को चन्द्रगच्छीय ही बतलाते " हैं । किन्तु इन्होंने अपनी कृतियों की प्रशस्तियों में अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख नहीं किया है । क्या ये दोनों (जम्बूनाग और जम्बूकवि) एक ही व्यक्ति हैं या अलग-अलग ! इस सम्बन्ध में पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव में कुछ भी कह पाना कठिन है, किन्तु चन्द्रकुल से सम्बद्ध प्राचीन साहित्यिक साक्ष्य होने से ये महत्त्वपूर्ण माने जा सकते हैं ।
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कनकप्रभसूर
I
इसी प्रकार चन्द्रगच्छीय किन्हीं उदयप्रभसूरि द्वारा रचित शीलवतीकथा नामक कृति भी मिलती है, परन्तु इसके रचनाकाल, और ग्रन्थकार की गुरु- पम्परा के बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती । इस कृति की वि० सं० १४०० / ईस्वी सन् १३४४ में लिपिबद्ध की गयी एक प्रति मिली है ।
(ख) पुस्तक प्रशस्तियां अथवा प्रतिलिपिप्रशस्तियां
१. योगशास्त्रवृत्ति की पुस्तकप्रशस्ति –— कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचंद्र द्वारा रची गयी योगशास्त्रवृत्ति की वि० सं० १२९२ / ईस्वी सन्
खण्ड १९, अंक ४
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