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से आराधक के जीवन में शान्ति, मोक्षोत्साह एवं गुरुदेवादि के प्रति श्रद्धा स्वयमेव समुत्पन्न हो जाती है इसलिए अहिंसा समत्ताराहना (सम्यक्त्वाराधना) रूप है।
बोही (बोधि)- सर्वज्ञ प्ररूपित धर्म की प्राप्ति बोधि है। अहिंसा सर्वज्ञवचन का प्राण है इसलिए बोधि है। सम्यग्दर्शन ज्ञानचरित्राणामप्राप्तप्रापणं बोधिः अर्थात् सम्यक्दर्शन ज्ञान और चारित्र, जो अप्राप्त है उनकी प्राप्ति बोधि है । अहिंसा रत्नत्रय की साधिका है इसलिए बोधि है।
नन्दा---'नन्दयति समृद्धि नयतीति नन्दा५१ जो समृद्धि की ओर ले जाती है वह नन्दा है । अहिंसा समृद्धिदात्री है, स्वपर को आनन्दित करने वाली है, इसलिए नन्दा है।
भद्दा (भद्रा)-- भदन्ते कल्याणी करोति देहिनमिति भद्रा' अर्थात् जो प्राणियों की कल्याण की है वह भद्रा अहिंसा है।
समिई (समिति)- 'सम्मयति ति समिती' अर्थात् जिसके द्वारा साधक सम्यक् प्रकार से गति करता है वह समिति अहिंसा है।
___अहिंसा जीवों की रक्षिका है इसलिए 'रक्खा' मंगलकारिणी है शिव, शान्ति स्वरूप, प्रमोदरूपा शीलमय एवं विभूतिमती है।
२. जीवों का आश्रय---संसारानल में दग्ध जीवों के लिए एक मात्र आश्रय अहिंसा है । इसलिए प्रश्न व्याकरण में उसे दीवो, ताणं, सरणं, आयतणं आदि अभिधानों से अभिहित किया गया है। 'सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स भवति दीवो ताणं सरणं ।५२ देव, मनुष्य एवं असुर सहित समग्रलोक के लिए आश्रय देने वाली द्वीप है । जैसे अगाध समुद्र में डूबने वालों के लिए द्वीप आश्रयभूत होता है, उसी प्रकार अहिंसा अगाध-संसार-सागर में फंसे जीवों को आश्रय देती है। अहिंसा प्राणियों की रक्षा करती है इसलिए त्राण, जीवों को शरण देती है इसलिए शरण, कल्याण कामियों के लिए एक मात्र गमनीय है, इसलिए गति है। अहिंसा में वात्सल्य, दया, सेवा, सहिष्णुता, धैर्य आदि अनेक गुण एवं सुख संपदाएं प्रतिष्ठित है इसलिए उसे प्रतिष्ठा कहा गया है । क्षमा, दया, करुणा, सरलता, सेवा आदि गुणों का आधार अहिंसा है इसलिए इसका 'आयतणं' अभिधान सार्थक है।।
३. भावनारूपा-अहिंसा विश्वास, अभयत्व आदि भावना रूप है। यह समस्त प्राणियों में आश्वासन की भावना को पुष्ट करती है । सम्पूर्ण जीवों को भरोसा देने वाली है इसलिए इसका नाम आश्वास (अस्सासो) और विश्वास (वीसासो) है। इसे पवित्ता, सूती तथा पूया कहा गया है। यह पवित्र भावनारूप है इसलिए पवित्रा (पवित्ता), एवं भावों की निर्लोभता रूप होने से इसे शुचि (सुची) कहा गया है। यह भावपूजा रूप है इसलिए 'पूया' अभिधान सार्थक है।
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तुलसी प्रज्ञा
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