SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कुमारपाल भूपालचरित एक घटना प्रधान महाकाव्य है । मूल कथानक में हेमचन्द्र और कुमारपाल से सम्बन्धित अनेक अलौकिक और अतिप्राकृतिक अवान्तर कथाओं की योजना की गयी है । इसमें वीररस की प्रधानता है । इसके कुछ स्थलों पर शान्त रस की अभिव्यक्ति हुई है । इसकी भाषा सरल और प्रवाहपूर्ण है जिसमें देशी भाषा के शब्द भी प्राप्त होते हैं। इसके प्रत्येक सर्ग में अनुष्टुप् छन्द की प्रधानता है। इसमें अलंकारों का प्रयोग कम हुआ है। हम्मीर महाकाव्य ___ हम्मीर महाकाव्य के रचयिता नयचन्द्रसूरि हैं जो कुमारपालभूपाल चरित के रचयिता जयसिंहसूरि के प्रशिष्य और प्रसन्नचन्द्रसूरि के शिष्य थे। श्री अगरचन्द्र नाहटा महोदय को इस महाकाव्य की जो प्राचीनतम हस्तलिखित प्रति प्राप्त हुई थी, वह वि. सं. १४८६ की है। अतः इसकी रचना इससे पूर्व अवश्य हो चुकी थी। इतिहासकार डॉ० दशरथ शर्मा ने इसका रचनाकाल वि. सं. १४४० के लगभग माना है।" हमीर महाकाव्य में कुल १४ सर्ग हैं। प्रथम सर्ग में चाहमान वंश की उत्पत्ति पौराणिक आधार पर वर्णित है । तत्पश्चात् वासुदेव से लेकर सिंहराज तक हम्मीर के पूर्वज चाहमान राजाओं का संक्षिप्त इतिहास है। द्वितीय सर्ग में भीमराज से लेकर पृथ्वीराजपर्यन्त १८ राजाओं का वर्णन है। तृतीय सर्ग में शहाबुद्दीन गोरी के आक्रमणों से भयभीत पश्चिम भारत के राज पृथ्वीराज से सहायता मांगते हैं । पृथ्वीराज शहाबुद्दीन को बन्दी बनाता है और दण्ड देकर उसे छोड़ देता है। आठवीं बार वह स्वयं पराजित हो जाता है और बन्दी-गृह में अनशन करने से उसकी मृत्यु हो जाती है। चतुर्थ सर्ग में पृथ्वीराज के पौत्र गोविन्दराज द्वारा रणस्तम्भपुर में नवीन राज्य स्थापित करने, उसके पुत्र प्रह्लादन की मृत्यु और प्रह्लादन के पुत्र वीरनारायण के राजा बनने की घटना वर्णित है । शकपति अल्लाबुद्दीन छल से वीरनारायण को मरवा देता है। तदनन्तर प्रह्लादन के कनिष्ठ भ्राता वाग्भट द्वारा रणस्तम्भपुर को अधिकार में करने, उसके पुत्र जैत्रसिंह के गद्दी पर बैठने एवं उसकी पत्नी हीरादेवी के गर्भ से हमीर के उत्पन्न होने का वर्णन है।। ___ पंचम सर्ग में ऋतु वर्णन, षष्ठ सर्ग में जलकेलि और सप्तम सर्ग में सन्ध्या, चन्द्रोदय एवं सुरतादि का वर्णन किया गया है। अष्टम सर्ग में हम्मीर के राजा बनने और जैत्रसिंह की मृत्यु का वर्णन है। नवम सर्ग में हम्मीर की दिग्विजयों का वर्णन किया गया है। हम्मीर द्वारा कर न देने पर दिल्ली नरेश अल्लाबुद्दीन अपने भाई उल्लूखान को हम्मीर पर आक्रमण २८४ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524578
Book TitleTulsi Prajna 1994 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy