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________________ नन्दसूरि) और वस्तुपालचरित (जिनहर्ष) को इस श्रेणी में नहीं रखा गया है क्योंकि इनमें अष्टाधिक सर्ग नहीं है । इसी प्रकार कतिपय महाकाव्यों के प्रशस्ति सर्ग यथा वस्तुपालकृत 'नरनारायणानन्द' महाकाव्य (सोलहवां सर्ग) तथा सोमेश्वरकृत 'सुरथोत्सव' महाकाव्य (पन्द्रहवां सर्ग), उदयप्रभसूरिकृत 'धर्माभ्युदयं, महाकाव्य (पन्द्रहवां सर्ग) भी यद्यपि ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़े हुए हैं। फिर भी इन महाकाव्यों में शास्त्रीय अथवा पौराणिक शैलियों की प्रधानता होने के कारण इन्हें भी ऐतिहासिक महाकाव्यों की श्रेणी में रखना तर्कसंगत नहीं प्रतीत होता है। जैन-संस्कृत-वाङ्मय के ऐतिहासिक महाकाव्यों का विवरण अधोलिखित रूप में अभिव्यक्त करना ज्यादा समीचीन होगा-- द्वयाश्रय महाकाव्य __ इस महाकाव्य के रचयिता संस्कृत वाङमय के मूर्धन्य विद्वान् कलिकाल सर्वज्ञ जैनाचार्य हेमचन्द्र हैं जिनका समय गुजरात के चौलुक्य नरेश सिद्धराज जयसिंह एवं कुमारपाल के शासन-काल में था। इनके धर्म-शासनकाल में जैन-धर्म राजधर्म के रूप में प्रतिष्ठित हुआ था। उन्होंने इस महाकाव्य की रचना बारहवीं शताब्दी (११६३ ई०) में की थी। इसमें कुछ २८ सर्ग हैं जिनमें प्रथम २० सर्ग संस्कृत में और अन्तिम ८ सर्ग प्राकृत भाषा में उपनिबद्ध हैं । संस्कृतः द्वयाश्रय में २८२८ श्लोक तथा प्राकृत द्वयाश्रय में १५०० श्लोक' हैं । प्राकृत द्वयाश्रय को 'कुमारपालचरित' (कुमारवालचरिय) भी कहा जाता है । कवि का अभिप्राय इस दो आश्रय वाले काव्य से एक ओर व्याकरण के नियमों को समझाने का था तो दूसरी ओर चौलुक्यवंशी शासकों के गुणों का संकीर्तन करने से था । इस नाम का दूसरा कारण यह भी संभव है इसमें संस्कृत और प्राकृत दोनों भाषाओं का प्रयोग हुआ है। ___संस्कृत द्वयाश्रय के प्रथम सर्ग में आशीर्वचन रूप मंगलाचरण के पश्चात् चौलुक्यवंश की उत्पत्ति और उस वंश के प्रथम शासक मूलराज के गुणों का वर्णन है । द्वितीय सर्ग से पंचम सर्ग तक मूलराज के राज्यकाल का इतिहास वर्णित है। षष्ठ सर्ग में मूलराज के पुत्र चामुण्डराज की उत्पत्ति, उसके युवक हो जाने पर पिता-पुत्र द्वारा लाट देश पर आक्रमण करना, लाट देश के राजा का मारा जाना, चामुण्डराज का राज्याभिषेक एवं मूलराज का स्वर्ग-गमन वर्णित है । सप्तमसर्ग में चामुण्डराज के बल्लभराज, नागराज एवं दुर्लभराज नामक पुत्रत्रय की उत्पत्ति, शीतला-बीमारी से बल्लभराज की मृत्यु, नागराज द्वारा राज्य ग्रहण न करना, दुर्लभराज का राज्याभिषेक चामुण्डराज का तपश्चरण हेतु नर्मदा किनारे जाना आदि तथ्यों पर प्रकाश डाला गया है। नवम सर्ग में भीम-भोज तथा चेदिराज के मध्य १७८ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524578
Book TitleTulsi Prajna 1994 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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