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________________ इस प्रकार रत्नपाल चरित्त में मानवीय जगत् से संग्रहित बिम्बों का सफल चित्रण हुआ है । ० पशुजगत् -- विवेच्य काव्य में अनेक स्थलों पर पशुजगत् से बिम्बों का ग्रहण किया गया है । इस श्रेणी के बिम्बों की संख्या अत्यल्प है । कुछ उदाहरण द्रष्टव्य है देशाटन पर निकले हुए राजा रत्नपाल के लिए वन्य पशु ही सुहृद् वर्ग बनकर मनोरंजन कर रहे हैं ---- सखाय एते पशवो विनोदं, तन्वन्ति वैचित्युपदर्श नेन । राज्याद् बिना वाहनमत्र किं मे, २९ न्यूनं स्थितोऽत्रेति विवेक्ति तावत् ॥ मदोन्मत्त हाथी का बिम्ब दर्शनीय है वितर्क पूर्व नृपतिः स एव, ददर्श कञ्चित् करिणामधीशम् । दानप्रदानान्मुदितै द्विरेफै:, संसेवितं दैवतवद्धनाशैः ॥ ३ • प्राकृतिक बिम्ब - रत्नपालचरित का कवि प्रकृति - चारूता दर्शन में कुशल है । प्रकृति का मानवीयकरण कवि के विराट् व्यक्तित्व का परिचायक है । प्रकृति का प्रत्येक कण मानव जीवन के अभ्युदय सिद्धि में सहायक है - इसका सुन्दर निदर्शन विवेच्य काव्य में प्राप्त होता है । प्राकृतिक बिम्बों को चार श्रेणियों में रखकर विवेचित किया जा रहा है (क) समय- - इस उपविभाग के अन्तर्गत प्रातः, सन्ध्या रात्री आदि बिम्बों का उपन्यास किया गया है- सूर्योदय सूर्योदय के रमणीय वर्णन से ही काव्यारम्भ होता है । प्राचीक्षितिज पर उदित सूर्य की प्रथम किरणें किसके लिए मनोहर नहीं होती है ? Jain Education International अथांशुमाली लसदंशुमाला समाकुलः पूर्वशिलोच्चयस्य । चूलां ललम्बे तमसः शमाय, सन्तो निसर्गादुपकारिणो यत् । " रात्री - विवेच्य काव्य में रात्री का मनोरम वर्णन विन्यस्त है । रात्री का मानवीकरण महाप्रज्ञ की महीयसी - प्रतिभा का चूड़ान्त निदर्शन है | रात्री का प्रथम दर्शन एक लज्जावती स्त्री के रूप में होता है कहे जाने पर कि तुम्हारा । राजा के द्वारा यह संसार में आना पाप का कारण है । तो वह खंण्ड १९, अंक ४ २७१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524578
Book TitleTulsi Prajna 1994 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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