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१३. जटासिंह नन्दि का वरांगचरित और उसकी परम्परा -- डॉ० सागरमल जैन (अंक २, पृ० ९३ - १०५ ) १४. जिनागमों का संपादन- जौहरीमल पारख ( अंक ४, पृ० २८५-२९२)
१५. जीवों और पौधों के लुप्त होने की समस्या - डॉ० सुरेश जैन एवं श्रीमती चित्रलेखा जैन (अंक ३, पृ० १७७ - १८० ) १६. जिनसेनकृत हरिवंश पुराण में प्राचीन राजतंत्र का स्वरूप --डॉ० सोहनकृष्ण पुरोहित (अंक ४, ३०९-३१५ ) १७. जैन एवं जैनेतर राजनीति में दूत- डॉ० सुनीता कुमारी ( अंक १, पृ० ३१ - ३४) -डॉ० ए० एल० श्रीवास्तव ( अंक ३, पृ० १९९ - २०५ ) - राजवीरसिंह शेखावत
१८. जैन तीर्थंकरों का गजाभिषेक
१९. जैन दर्शन - स्याद्वाद पद्धति
( अंक १, पृ० ३५-४० )
२०. जैन द्रव्य सिद्धांत : परिचय और समीक्षा राजवीरसिंह शेखावत ( अंक २, पृ० १२३ - १३० ) २१. जैन परंपरा के विकास में श्राविकाओं का योगदान - डॉ० महावीरराज गेलड़ा (अंक १, पृ० १-२ ) २२. जैन प्रमाण मीमांसा में स्मृति प्रमाण -- राजवीरसिंह शेखावत ( अंक ३, पृ० २२३-२३५) २३. जैन वाङमय में उपलब्ध लब्धियों के प्रकार-मुनि विमलकुमार ( अंक २, पृ० १३१-१४४) २४. तेरापंथ का राजस्थानी साहित्य - ( २ ) मुनि सुखलाल ( अंक १ पृ० ४९-५३ ) २५. तेरापंथ के आधुनिक राजस्थानी संत-साहित्यकार - (३) -मुनि सुखलाल (अंक २, पृ० १५१ - १५६ ) २६. तेरापंथ का संस्कृत-साहित्य : उद्भव और विकास - ( २ ) -मुनि गुलाबचंद्र 'निर्मोही' (अंक १, पृ० ५४-६२ ) २७. तेरापंथ का संस्कृत साहित्य : उद्भव और विकास - ( ३ ) - मुनि गुलाबचन्द्र 'निर्मोही' (अंक २, पृ० २३७ - २४४ ) २८. तेरापंथ का संस्कृत साहित्य : उद्भव और विकास - ( ४ )
--मुनि गुलाबचंद्र 'निर्मोही' (अंक ४, पृ० ३१७ - ३२२) २९. न्याय-वैशेषिक, योग एवं जैन दर्शनों के संदर्भ में ईश्वर -- डॉ० कमला पंत (अंक ४, पृ० ३२३ - ३३०)
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तुलसी प्रज्ञा
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