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३०. परमधर्म श्रुति विहित अहिंसा डॉ० देव सहाय त्रिवेद ( अंक ३, पृ० २०६ ) ३१. पंच परमेष्ठि पद और अर्हन्त तथा अरिहन्त शब्द -- डॉ० परमेश्वर सोलंकी (अंक १, पृ० ३-१३ ) ३२. प्राकृत भाषा के कतिपय अव्यय- -डॉ० हरिशंकर पाण्डेय ( अंक २, पृ० १७७-१२२) ३३. प्रमाण - मीमांसा के परिप्रेक्ष्य में प्रमाण के लक्षण का विवेचन - कु० विनीता पाठक (अंक ३, पृ० २१९-२२२) ३४. बसंत विलास में वर्णित ऐतिहासिक तथ्यों का महत्त्व डॉ० केशव प्रसाद गुप्त (अंक २, पृ० १०७-११६) ३५. भाग्य को बदलने का सिद्धांत रत्नलाल जैन
( अंक ३, पृ० २०७-२१२) ३६. रत्नपाल चरित : एक साहित्यिक अनुशीलन - डॉ० हरिशंकर पाण्डेय ( अंक ४, पृ० २९३ - ३०८ ) ३७. लोक देवता और उनके वाद्य - डॉ० जयचन्द्र शर्मा
( अंक ३, पृ० १९८ )
३८. वर्द्धमान ग्रंथागार, लाडनूं की प्रत् और ऋग्वेद का ग्रंथाग्र : परिमान डॉ० परमेश्वर सोलंकी (अंक ४, पृ० २७३-२८४)
३९. षड् आस्तिक एवं बौद्ध दर्शनों में मान्य कर्मवाद से जैन सम्मत कर्मवाद की विशिष्टता डॉ० कमला पंत (अंक १, ६३-७० )
४०. संस्कृत शतक परम्परा में आचार्य विद्यासागर के शतक एक परिचय - श्रीमती डॉ० आशालता मलैया (अंक २, पृ० १४५ - १५० ) ४१. सांख्य दर्शन और गीता में प्रकृति : एक विवेचन - डॉ० कमला पंत ( अंक २, पृ० ८७-९२) ४२. स्याद्वाद : आधुनिक परिप्रेक्ष्य में समणी स्थितप्रज्ञा ( अंक ४, पृ० ३३१-३३६) ४३. सृष्टि विज्ञान में जैन उल्लेखों का महत्त्व डॉ० परमेश्वर सोलंकी ( अंक ३, पृ० १७३ - १७६)
४४. संपादकीय :
(१) अणुव्रत प्रस्तोता का ५७वां पाटोत्सव, अंक २, पृ० २-६ -- परमेश्वर सोलंकी (२) जैनागमों की भाषा का मूल स्वरूप, अंक १, पृ० २-३ परमेश्वर सोलंकी
(३) उत्कल के "कलिंग जिन" अंक १, पृ० ४-६
खण्ड १९, अंक ४
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परमेश्वर सोलंकी
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