SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ और सम्प्रति दोनों ने मगध में शासन किया और दोनों भाई-भाई नहीं, पितापुत्र थे । मत्स्यपुराण में कहा गया है.--- राजा दशरथोष्टौ तु तस्य पुत्रः भविष्यति ॥ भविता नव वर्षाणि तस्य पुत्रस्तु सम्प्रतिः ।' वायुपुराण की 'ई' प्रति में भी यही बात मिलती है : राजा दशरथस्त्वष्टौ तस्य पुत्रो भविष्यति । भविता नव वर्षाणि तस्य पुत्रस्य सम्प्रतिः ।।' शालिशूक का दशरथ और सम्प्रति से क्या सम्बन्ध था, कुछ स्पष्ट नहीं है । सौराष्ट्र में जैन-मत के प्रचार के लिए यदि उसने कोई महत्त्वपूर्ण कार्य किया होता तो जैन-ग्रन्थों में सारा श्रेय सम्प्रति को ही क्यों दिया जाता? स्थिति कुछ ऐसी है कि कुछ इतिहासकार ध्रव के विपरीत उसको बौद्धमत का उत्साही प्रचारक मानते हैं । भागवत, विष्णु और मत्स्य में मौर्य राजाओं की संख्या १० मानकर शालिशूक को गिना गया है। अन्य पुराणों में शालिशूक का नाम गिनने की अनिच्छा और मौर्य राजाओं की संख्या १० से ९ कर देने की प्रवृत्ति दिखायी देती है। केवल वायुपुराण (ई) में शालिशूक का नाम ही नहीं दिया गया बल्कि उसकी शासनावधि भी दी गयी है १३ वर्ष : शालिशूक: समा राजा त्रयोदश भविष्यति । किन्तु शालिशूक ने यदि सचमुच १३ वर्ष राज्य किया तो क्या उसकी उपेक्षा की जा सकती थी ? क्या केवल जैन या बौद्ध होने के कारण उसका नाम मौर्यों की वंशावली से निकाल देना सम्भव था जबकि उक्त राजवंश का बौद्ध और जैन मतों से सम्बन्ध सुविदित था ? पुराणों में मौर्यवंश की शासनावधि निर्विवाद रूप से १३७ वर्ष कही गयी है और व्यक्तिशः अवधि निम्न प्रकार मिलती है: १. चन्द्रगुप्त २४ वर्ष २. बिन्दुसार (भद्रसार या नन्दसार)-२५ वर्ष ३. अशोक-३६ वर्ष ४. कुणाल -८ वर्ष ५. दशरथ---८ वर्ष ६. सम्प्रति-९ वर्ष ७. शालिशूक-? ८. देवधर्मा (देवबर्मा या सोमशर्मा)-७ वर्ष ९. शतधन (शतधन्वा)-८ वर्ष १०. बृहद्रथ-७ वर्ष शालिशूक को छोड़ बाकी राजाओंकी शासनावधि का योगफल १३२ वर्ष खण्ड १९, अंक २ १३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524576
Book TitleTulsi Prajna 1993 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy