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तालजंघ के अनेक पुत्रों में से मुख्य था वीतिहोय । तालजंघ के वंशजों ने इतना सुनाम पाया कि तालजंघ शब्द हैहयवंश की सभी शाखाओं का वाचक हो गया। वंशगत शत्रुता के कारण बदला लेने के लिए किसी तालजंघ कुल के व्यक्ति ने कुमार सेन को मार डाला ।' भूत-प्रेत की बात अन्धविश्वासपूर्ण लगती है अतः लोग झटपट इस व्याख्या को मानने के लिए तैयार हो जाते हैं । किन्तु तालजंघ एक क्षत्रिय गोष्ठी का नाम है, अत: किसी व्यक्ति का नाम नहीं हो सकता यह तर्क भ्रांत है। हिन्दीभाषी अंचल में 'बँगाली' नाम के लड़के या 'गुजराती' नाम की लड़की का दर्शन मिलना कुछ कठिन नहीं और पश्चिम बंगाल में 'मालविका' नाम की लड़कियाँ भी अज्ञात नहीं। और भूतप्रेत को माननेवाले तो आज भी संख्या में अधिक ही है। घटनास्थल के बारे में प्रसिद्धि रही होगी कि वहाँ भूतों का बसेरा है और लोक-विश्वास की आड़ में किसी गुप्त घातक ने कुमार सेन को मार डाला। वाण ने भी यही सुना और लिखा। कुमारसेन की हत्या करनेवाला कोई हैहयवंशीय क्षत्रिय होता तो यह बात बाणभट्ट क्यों छिपाते ? हत्या का कारण यह बताया जाता है कि प्रद्योत के पिता ने वीतिहोत्र वंश के अन्तिम राजा को मारकर प्रद्योत को गद्दी पर बैठाया था । यदि यही बात थी तो हत्याकारी प्रद्योत और उसके पिता को छोड़कर कुमारसेन को मरने क्यों गया?
___ हत्या किस परिस्थिति में हुई यह भी जाने-माने विद्वान् स्पष्ट नहीं कर पाये हैं । सुरेन्द्रनाथ मजूमदार ने "महामांसविक्रयवादवातूलम" का अर्थ यह लगाया है कि कुमारसेन भूतों को नर-मांस की बलि देने गया था। उक्त पद से यह अर्थ कैसे निकल सकता है, वे स्पष्ट नहीं करते । डा० देवसहाय त्रिवेद का कहना कि कुमारसेन कसाई के घर पर 'मनुष्य-मांस बेचने के विषय में अतुक बहस या वितण्डा कर रहा था । यही अर्थ संस्कृतज्ञ विद्वान् के उपयुक्त है।
___ कुमारसेन को बाण ने 'जघन्यजम' कहा है। इसका अर्थ सुरेन्द्रनाथ मजूमदार की समझ में कनिष्ठ पुत्र है जबकि स्मिथ की समझ में छोटा भाई।" ये विद्वान् इस बात पर ध्यान नहीं देते कि 'जघन्यज' का अर्थ शूद्र या शूद्रा की सन्तान भी होता है। अमरकोश, द्वितीय काण्ड, शूद्रवर्ग का प्रथम श्लोक है : शूद्राश्चावरवश्च वृषलाश्च जघन्यजाः ।
हम जानते हैं कि अवन्तिराज प्रद्योत की महिषी अंगारवती के पुत्र थे गोपाल और पालक । उसका तीसरा पुत्र कुमारसेन अत्यन्त अनुल्लिखित है। अनुल्लेख का कारण स्पष्ट हो जाता है यदि मान लें कि उसकी माता शूद्र जातीय' थी।
कुमारसेन का एक अन्य विशेषण है "पोणकिम् ।" सुरेन्द्रनाथ मजमदार से लेकर स्मिथ तक फैशन यह चला आया है कि प्रद्योतवंश को मगध
तुलसी प्रज्ञा
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