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डाला । यह मित्रदेव कौन था और उसने हत्या क्यों की यह तो अज्ञात है । जहाँ तक अग्निमित्र का सम्बन्ध है वह तो शुंगवंश के दूसरे राजा के रूप में परिचित ही है । उसके पुत्र सुमित्र के बारे में डा० आर० एम० स्मिथ ने दो अटकलें लगायी हैं। पहले तो उन्होंने वायु पुराण के आनन्दाश्रम संस्करण के निम्न पाठ को स्थान- भ्रष्ट बताते हुए इस विषय से जोड़ना चाहा
है ।
अपार्थिवसुदेवन्तु वाल्याद् व्यसनिनं नृपम् ।
देवभूमिस्ततोन्यस्तु शुङ्गेषू भविता नृपः ॥
इसे मानें तो बुरी लत में फँसे सुदेव को हटाकर देवभूमि राजा बना । स्मिथ कहते हैं कि 'अपार्थिवं सुदेवन्तु' या 'अपार्थिवं वसुदेवन्तु पाठ भी सम्भव हैं । किन्तु इस पाठभेद को दूसरे पुराणों का समर्थन प्राप्त नहीं है, न 'वसुदेवन्तु' पाठ ही प्राप्त है । फिर उद्धृत श्लोक में क्रिया है ही नहीं जो इसके अशुद्ध होने का प्रमाण है । सर्वोपरि इसको स्थानभ्रष्ट बताना निराधार है | अतः सुमित्र को सुदेव अथवा वसुदेव से नहीं मिला सकते । बाण जब उसके हत्याकारी का नाम मित्रदेव बताते हैं तब हत्याकारी को देवभूमि बताना भी मनमानी है ।
लिए जब हम विवश ? 'वसुमित्र' की
स्मिथ की दूसरी अटकल यह है कि मालविकाग्निमित्रम् नाटक में पुष्यमित्र के जिस पौत्र द्वारा यवनों के पराजय का उल्लेख है, वही वसुमित्र बाण का सुमित्र है । स्मिथ का कहना है कि उत्साही युवक का राजा बनकर नाटकों में रूचि लेने लगना सम्भव है । वसुमित्र के स्थान पर सुमित्र पाठ मत्स्यपुराण की डी प्रति में मिलता भी है और उसने दस वर्ष शासन किया | यह पाजिटर और स्मिथ दोनों को मान्य है । हमारी समझ में अधिकांश प्रतियों के पाठ 'वसुमित्र' को हटाकर 'सुमित्र' ग्रहण करना चिन्त्य है । अग्निमित्र का दूसरा कोई पुत्र नहीं था, ऐसा मानने के नहीं हैं तो क्यों न हम सुमित्र को वसुमित्र से भिन्न मानें जगह मत्स्यपुराण ने 'सुमित्र' रखा तो उसे पाद पूर्ति के लिए 'तु' लाना पड़ा (सुमित्रस्तु ) । जहाँ तक बाण का प्रश्न है वे गद्य में लिख रहे थे अतः वसुमित्र को संक्षिप्त रूप देना उनके लिए अनावश्यक था । अतः सुमित्र वसुमित्र से भिन्न है। मूल पाठ है अतिदयितलास्यस्य च शैलूषमध्यास्व मूद्धनिम सिलतया मृणलमिवालुनादग्निमित्रामत्यजस्य सुमित्रस्य मित्रदेवः । २. काकवर्ण की हत्या नगर के निकट शिशुनाग के पुत्र काकवर्ण का गला किसी ने छुरे से काट डाला था ( काकवर्ण: शैशुनागिश्च नगरोपकण्ठे कण्ठे निचकृते निस्त्रिशेन ) । स्मिथ के मत में इस घटना का सम्बन्ध शिशुनागवंश के अन्त और नन्दवंश के उदय से है। उनका कहना है कि पुराणों के पाठ में उलट-फेर हो गया है । मगध में पहले क्षत्रीजा, विम्बसार, अजात
तुलसी प्रज्ञा
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