SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रहे षड्यन्त्र का आभास तक नहीं पा सका था। 'प्रज्ञादुर्बलञ्च' की जगह 'प्रतिज्ञादुर्बलश्च' पाठभेद भी मिलता है। उसका आशय यह होगा कि पुष्यमित्र प्रतिज्ञा-पालन के बारे में दुर्बल अर्थात् ढीला था। राजभक्ति की जो शपथ उसने सेनापति के रूप में ग्रहण की थी, उसका उसने पालन नहीं किया। इन दोनों पाठों में से कौन-से प्रामाणिक संस्करण को भावी संपादक ग्रहण करेंगे, यह तो भविष्य ही बता सकता है। पुराणों में इस घटना के विषय में इतना ही उल्लेख मिलता है कि पुष्यमित्र ने बृहद्रथ का उच्छेद करके राज्य पाया। ३. देवभूति की हत्या-- बाण की सूचना के अनुसार शुंगवंश का राजा देवभूति अत्यन्त कामुक था । मन्त्री वसुदेव ने राजा की दासी की कन्या को रानी के वेष में उसके पास भेजकर उसकी हत्या कर दी-अतिस्त्रीसङ्गरतमनङ्ग परवशं शुङ्गममात्यो वसुदेवो देवभूति दासोदुहित्रा देवीव्यञ्जनया वीतजीवितमकारयत् । पुराणों के अनुसार शुंगवंश के अन्तिम राजा का नाम देवभूमि या देवभूति था जिसे मिटाकर उसका मंत्री वसुदेव राजा बना। शंगराजा को बचपन से व्यसनी कहा गया है । इसका अर्थ यह हो सकता है कि कम उम्र में ही वह कुमार्गगामी हो गया था, उसकी इस दुर्बलता को वासुदेव ने अपने काम में लगाया होगा किन्तु पुराण उसकी हत्या के बारे में कोई ऐसा इंगित नहीं देते जिससे उसके कौशल का पता चले ।। ४. शकराज की हत्या-शत्रपुरी में जाकर नारीवेशधारी चन्द्रगुप्त ने शकराज की हत्या कर दी । यह घटना चन्द्रगुप्त द्वितीय के जीवन की है। कामी पुरुष रामगुप्त शकराजा की मांग पर अपनी सुन्दरी पत्नी ध्रुवदेवी उसके पास भेजने को राजी हो गया था। उसके अनुज ने स्वयं रानी के रूप में तथा अन्य योद्धाओं को परिचारिकाओं के रूप में लेकर शत्रपुरी में प्रवेश किया तथा शक राजा को मार डाला। इस घटना को पहले लोग कल्पना मानते थे। यहाँ तक कि रामगुप्त के अस्तित्व के बारे में भी लोग सन्देह करते थे । किन्तु राम गुप्त के अभिलेख मिल चुके हैं और विशाखदत्त के देवीचन्द्रगुप्तम् नाटक समेत बहुत से साहित्यिक साक्ष्य भी मिलते हैं। विस्तृत विवरण डा० वासुदेव उपाध्याय की पुस्तक 'गुप्त अभिलेख' में देखा जा सकता है । अतः विशेष चर्चा अनावश्यक है। मूल पाठ है-अरिपुरे च परकलत्रकामुक कामिनीवेशगुप्तश्च चन्द्रगुप्तः शकपतिम शातयदिति । अन्त में हम उन घटनाओं को लेते हैं जिनके बारे में अन्यत्र कहीं कोई उल्लेख नहीं मिलता किन्तु जिनका सम्बन्ध ऐतिहासिक पुरुषों से है। इस कोटि में विचारार्थ हम तीन घटनाएं लेते हैं १. सुमित्र की हत्या-अग्निमित्र के पुत्र सुमित्र को नाटक देखने का बड़ा नशा था । मित्रदेव ने नटों के बीच बैठकर तलवार से उसका सिर काट खण्ड १९, अंक २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524576
Book TitleTulsi Prajna 1993 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy