SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संस्करण में इसकी पुष्टि के लिए कोई शब्द नहीं मिलता। कोई प्रामाणिक संस्करण अभी नहीं हुआ, केवल कुछ परीक्षोपयोगी संस्करण छपे हैं । अत: हम उसी के उदाहरण दे रहे हैं । २. चन्द्रकेतु--यह राजा व्यसन के कारण मन्त्रीसमेत निहत हुआ था । इसकी गुप्तहत्या राजा शूद्रक के दूत ने करवायी थी। इस राजा को चकोरनाथ कहा गया है। लगता है चकोर किसी राज्य का नाम था। इस शूद्रक का देश-काल हमें ज्ञात नहीं होता । हत्या का कारण भी अज्ञात है । मूल पाठ है-उत्सारकरुचिञ्च रहसि ससचिवमेव दूरीचकार चकोरनाथ शूद्रकदूतः चन्द्रकेतुं जीवितात् । ३. क्षत्रवर्मा--इसे मौखरी राजा कहा गया है। मौखरी राजा हर्षवर्धन के रिश्तेदार थे । यह घटना बाणभट्ट के समय से बहुत पहले की नहीं होगी। फिर भी अन्यत्र इसका उल्लेख नहीं मिलता । मूल पाठ है-बन्दिरागपरञ्च परप्रयुक्ता मंखा मौरिं मूर्ख क्षत्रवर्माणमुद खनन् । इससे स्पष्ट होता है कि शत्रुपक्ष के भेजे गए गुप्तधातकों ने बन्दीजनों के वेष में आकर जयजयकार करते हुए क्षत्रवर्मा को मार डाला था। किन्तु क्षत्रवर्मा का शत्रु कौन था ? इस पर अभी तक प्रकाश नहीं डाला गया । जिन घटनाओं के बारे में साहित्यिक साक्ष्य मिलते हैं उनमें चार मुख्य हैं : - १. वत्सराज का कायरुद्ध होना--वत्स के राजा उदयन को हाथी पकड़कर वश में करने का शौक था । इसे जानकर अवन्ति के राजा प्रद्योत ने काठ का कृत्रिम हाथी बनाया और उसमें सिपाही छिपाकर रख लिए। उदयन जब हाथी के निकट गया तो छिपे हुए सैनिकों ने उसे घेर लिया और उज्जयिनी ले गये। इस घटना का विस्तृत विवरण कथासरित्सागर के तीसरे लम्बक में है। भास के नाटक "प्रतिज्ञायौगन्धरायण'' में भी उदयन के इस प्रकार पकड़े जाने का उल्लेख है। मन्त्री यौगन्धरायण ने किस प्रकार उदयन को छुड़ाया, यही भास के नाटक का विषय है। मूल पाठ है-"नागवन विहार शीलश्च मायामतङ्गाङ्गात् निर्गता महासेन सैनिका वत्सपर्ति न्ययंसिषु ।" २. बृहद्रथ की हत्या--मौर्य राजा बृहद्रथ को उसके सेनापति पुष्यमित्र ने सेना दिखाने के बहाने ले जाकर समूची सेना ही नहीं दिखायी, अपितु उसे पीस डाला। मूल का 'पिपेष' सूचित करता है कि रथ, घोड़े या हाथी से कुचलकर उसे मार डाला गया था। बाण इससे असन्तुष्ट हैं । अत: वे पुष्यमित्र को अनार्य कहते हैं। मूलपाठ है---प्रज्ञा दुर्बलञ्च बल दर्शन व्यपदेशेन दशिता शेषसैन्यः सेनानी अनार्यों मौर्य बहद्रथं पिपेष पुष्यमित्रः स्वामिनम् । इसमें बृहद्रथ के लिए प्रयुक्त विशेषण है 'प्रज्ञादुर्बल' (नासमझ)। इसका भाव यह है कि राजा समझ की कमी के कारण अपने विरुद्ध चल १३० तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524576
Book TitleTulsi Prajna 1993 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy