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१. हर्षचरित में कुछ राजवृत्त
- उपेन्द्रनाथ राय
जहाँ कालिदास की रचनाओं के प्रामाणिक संस्करण प्रकाशित करने की ओर साहित्य अकादमी तथा अन्य कई संस्थाओं और व्यक्तियों ने ध्यान दिया है. बाणभट्ट की रचनाओं को वह सौभाग्य आज तक नहीं मिला । डा० वासुदेवशरण अग्रवाल हर्षचरित और कादम्बरी के सांस्कृतिक अध्ययन प्रस्तुत करके ही रुक गये । दूसरे विद्वानों ने हर्षचरित और कादम्बरी के उद्धरण दिये हैं। उनके ऐतिहासिक मूल्य को स्वीकार किया है किन्तु उनका प्रामाणिक पाठ स्थिर करने और उनमें प्राप्त ऐतिहासिक सामग्री के बारे में छानबीन करने का काम यों ही छोड़ दिया है। इसकी आवश्यकता की ओर ध्यान दिलाने के लिए हम हर्षचरित के षष्ठ उच्छ्वास के एक अंश पर विचार करते हैं।
इस अंश में उन राजाओं का उल्लेख है जो अपने स्वभाव के दोषों से विपद्ग्रस्त, पराजित या निहत हुए। इनमें से कुछ के बारे में अन्यत्र कोई उल्लेख नहीं मिलता, कुछ के बारे में उल्लेख मिलता है किन्तु घटना अन्यत्र अनुल्लिखित है और कुछ के बारे में साहित्यिक साक्ष्य अन्यत्र उपलब्ध हैं। विद्वानों ने इनमें से कुछ उल्लेखों का अपने मतों की पुष्टि के लिए उपयोग किया है किन्तु मूल पाठ और उसके आशय के प्रति सदा न्याय हुआ हो ऐसा नहीं कहा जा सकता।
जिन व्यक्तियों और घटनाओं के बारे में हम पूर्णतः अन्धकार में हैं उनमें विशेष रूप से उल्लेखनीय तीन हैं :
१. चण्डीपति --यह कहाँ का राजा था हमें ज्ञात नहीं। इसके बारे में कहा गया है कि इसको अद्भुत चीजें देखने का बड़ा कौतूहल था । किसी यवन या यवनों को इसने दण्डित किया था। उसके या उनके आकाशतलगामी यन्त्रयान से वह न मालूम कहाँ चला गया। मूल पाठ है-"आश्चर्यकुतूहली च चण्डीपतिः दण्डोपनत यवननिमितेन नभस्तलयायिना यन्त्रयानेन अनीयत क्वापि"। कुछ विद्वान् इस घटना का सम्बन्ध किसी शिशुनागवंशीय राजा से जोड़ना चाहते हैं किन्तु कलकत्ता से प्रकाशित जीवानन्द विद्यासागर के प्राचीन
खण्ड १९, अंक २
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