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(निदान बंधनरूपी प्रतिज्ञा जिनके नहीं होती हैं वे अप्रतिज्ञ-निदानरहित बिना किन्ही कामनाओं वाले) अभिनव व्याख्याकारहरमनजेकोबी : No longing, free from attachment & resent
ment, free from desire-desireless, इच्छा कामना रागद्वेष
रहित । (page 81-2-3-5-6) खजीदेवराज : रस मारे प्रतिज्ञापण जबांघता। निरीह (अर्थात् तृष्णा रहित,
उदासीन) निरीह भगवान वीर प्रभुए अनेकरीते । बारबार ऐवी
विधिपाली छै (आचाराङ्ग ९-१-२० इत्यादि) आ० आत्मारामजी : “कहने का तात्पर्य यह है कि भगवान ने कभी सरस
एवं स्वादिष्ट आहार ग्रहण करने को प्रतिज्ञा नहीं की थी इसीलिए उन्हें अप्रतिज्ञ कहा है। "परन्तु यह अप्रतिज्ञ=शब्द सापेक्ष है क्योंकि सरस आहार की प्रतिज्ञा नहीं की किन्तु नीरस आहार की प्रतिज्ञा अवश्य की थी, जैसे उड़द के बाकले लेने की प्रतिज्ञा की थी। इससे उन्होंने साधना काल में आहार के सम्बन्ध में कोई प्रतिज्ञा नहीं की, ऐसी बात नहीं है। फिर भी सूत्रकर ने जो अप्रतिज्ञ शब्द का प्रयोग किया है, उसका तात्पर्य इतना ही है कि सरस आहार की प्रतिज्ञा न करने या इच्छा न रखने से उन्हें अप्रतिज्ञ ही कहा है क्योंकि शरीर का निर्वाह करने के लिए आहार लेना आवश्यक है। "इसतरह भगवान ने स्वाद एवं अपने योगों पर विजय प्राप्त कर ली थी। इसी कारण उनकी नीरस आहार की प्रतिज्ञा को प्रतिज्ञा नहीं माना है क्योंकि वह आहार स्वाद एवं शक्ति बढ़ाने के लिये नहीं अपितु साधना में तेजस्विता लाने के लिये करते थे । इस अपेक्षा से अप्रतिज्ञ शब्द उपयुक्त ही
प्रतीत होता है [आचाराङ्ग पृष्ठ ६७१] युवाचार्यमहाप्रज्ञ : निष्काम । कामना पूत्ति के लिये संकल्प न करने वाला
अप्रतिज्ञ कहलाता है । वह व्यक्ति अप्रतिज्ञ होता है जो इह-परलोक के प्रति प्रतिवद्ध नहीं है केवल आत्मा के प्रतिबद्ध है। तप से यह फल मिले ऐसी आशंसा से रहित--अनाशसी अर्थात् सम्पूर्ण अनाशक्त । स्थान, आहार, उपधि, पूजा के लिये भी कोई प्रतिज्ञा नहीं करनी चाहिए [सूयगडो २।४२, ३१५३, ६।२१, १०।१, १५।२०] अमूच्छित्त । भगवती वृति अभयदेव पत्र ७०५ का हवाला देकर 'अन्नगिलाय' का अर्थ किया है जो अन्न के बिना ग्लान हो जाता है वह अन्नग्लायक कहलाता है।
खण्ड १९, अंक २
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