SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समाधान प्रेक्षमाण: पर्यालोचयन् न पुनर्भगवतः कथं चिद्दौर्मनस्यं समुत्पद्यते । तथाऽप्रतिज्ञ अनिदान इति । (अथवा छः महिनों से भी कुछ अधिक तक भगवान् पानी भी पिये बिना रात-दिन विहार करते रहे । किस अवस्था में ? अप्रतिज्ञ अर्थात् पीने के विचार से रहित । तथा कभों बासी भोजन किया। .... समाधि कायिक समाधान (शक्ति का) ख्याल रखते हुए; न कि फिर भगवान् का मन यकिञ्चत् भी दुःखी बन जावे । और अप्रतिज्ञ= अनिदानी) ९-४।३२० अविझाति से महावीरे आसणत्थे अकुकुएझाणं, उड्ढं अधेयतिरियं च पेहमणे समाहिमपडिण्णे ॥४॥ चूणि-x वृत्ति ----तथा समाधिम---अन्तःकरण शुद्धिच प्रेक्षमाणोऽप्रतिज्ञो ध्यायतीति) (तथा समाधि-----अन्तःकरण की शुद्धत्ता की प्रेक्षा करते हुए, प्रतिज्ञा रहित रहे ध्यान करते। सूत्रकृताङ्ग प्रथम श्रुतस्कन्ध :-- २-२।१३० सी ओदगपडिदुगंछिणो, अपडिण्णस्स लवावसक्किणो; सामाइयमाहुतस्स जं जोगिहिमते असणं न भुंजती ॥२०॥ चूणि - अपडिण्णोणाम अप्रतिज्ञः नास्य प्रतिज्ञा भवति यथा मया अनेन तपसाइत्थं णाम भविष्यतीति तं जधाणो इध लोगट्ठाए तवं करोति जफा धम्मिलयंभत्ता आहार उवधि पूयादि णमित्तं वा अप्रतिज्ञः। (अपडिण्णो अर्थात् अप्रतिज्ञ; उसके प्रतिज्ञा नहीं होती, जैसे कि इस तप से मुझे यह अमुक फल होगा । उदाहरणस्वरूप -इस लोक के लिए तप नहीं करता है, जैसे कि भगवान् धम्मिल ; अथवा आहार उपधि या पूजा के निमित्त (लिए) अप्रतिज्ञ') वत्ति ... न विद्यते प्रतिज्ञा--निदान रूपा यस्य सोऽप्रतिज्ञोऽनिदान इत्यर्थः । (निदानरूपी प्रतिज्ञा जिसके नहीं होती है वह अप्रतिज्ञ है अर्थात् निदान रहित) ३-३, २१७ तत्तेण अणुसट्टाने अपडिण्णण जाणया; ण एसणियगमग्गे असमिक्खावईकिती ॥४॥ चणि-अपडिण्णणं ति विसयकसाय णियत्तेण ।। (विषय कषायों में निश्चत लक्ष्य की प्रतिज्ञा से रहित अप्रतिज्ञ द्वारा) वत्ति ----न' अस्य मया इदम सतपि समर्थनीयमित्येवं प्रतिज्ञा विद्यते इति अप्रतिज्ञ । रागद्वेषरहितं साधुस्तेन । खण्ड १९, अंक २ १२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524576
Book TitleTulsi Prajna 1993 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy