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वृत्ति-न विद्यते निवात वसति प्रार्थनादिका प्रतिज्ञा यस्य स तथा ।
(बिना हवा वाली बसती की याचना आदि रूपी प्रतिज्ञा जिसके नहीं होती है वह अप्रतिज्ञ)
९-३।३०१ उवसंक मंतम पडिणं गामंतियं पिअपतं, पडिणिक्खमितुलूसिं सु एत्तातोपरंपलेहित्ति ।।९।।
चूणि---भिक्खट्ठाए वसहीणिमित्तंवा, उवसंकमंतज भणेज्ज गाममभिगच्छं तं ति अपडिण्णोणामपए पए परीसह उवसग्गाणं उदिण्णाणं ण पडिक्खिया कायव्वा ।
(भिक्षा के लिये या बसती के निमित्त अमुक कथित ग्राम के संमुख या पास आने पर उसके प्रति बिचार करने में अप्रतिज्ञ । भावार्थ है कि पग-पग पर परीषह व उपसगों के उदय आने पर प्रतीक्षा नहीं करना चाहिए ---- प्रतिज्ञा नहीं करनी चाहिए)
वृत्ति-नियति निवासादि प्रतिज्ञारहितं ।
(नियत=पहिले से ही पक्का तयशुदा आवास आदि की प्रतिज्ञा से रहित)
९-३।३०४ वो सट्ठकाए पणतासी दुक्ख सहे भगवं अपडिण्णे । चूणि -x वृत्ति-नास्य दुःख चिकित्सा प्रतिज्ञा विद्यत इति अप्रतिज्ञ ।
(दुखों का उपचार करने की प्रतिज्ञा जिसके नहीं होती है वह अप्रतिज्ञ)
९-४१३१२-३ अविसाहिए दुवे मासे, छप्पिमासे अदुवाऽपिवित्था, राओवरातं अपडिण्णे अण्णगिलायमेगंताभुंजे ॥६॥
छद्रेण एगया भुंजे अदुवा अट्ठमेण दसमेणवा, दुवालसमेणएगदा जे पेहमाणेसमाहिं अपडिण्णे ॥७॥
चूणि-अपडिण्णो भणति अण्णगिलाए एगता भुजे अहवाडट्ठमेण दसमेण दुवालसेण एगता जे एतं कंठ्यं । समाधीति तव समाधी व्याणं समाही तं पेहमाणे यदुक्त पस्समाणो, आहारं पडुच्च अपडिण्णे ।
('अप्रतिज्ञ' बोलेतो---कभी अन्न की भूख से ग्लानि होने पर भोजन किया अथवा कभी तीन कभी चार या कभी पांच दिनों के बाद भोजन किया [इसका अर्थ सरल है] तप समाधि, निर्वाण समाधि का ध्यान (ख्याल) उपर्युक्त पर दृष्टि रखते हुए। आहार की अपेक्षा से अप्रतिज्ञ)
वृत्ति- अथवा षड्पिमासान् साधिकान् भगवान् पानकम पीत्वाऽपि रात्रोपरात्र मित्यहनिशं विहृतवान् । किंभूतः ? अप्रतिज्ञः पानाभ्युपगम रहित इत्यर्थः । तथा अन्नगिलायन्ति पर्य षितं तदेकदा भुक्तवानिति । समाधि शरीर
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तुलसी प्रज्ञा
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