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________________ मं० उत्तम नायिका है। प्रिय पर कोप न करने वाली उत्तम नायिका होती ३. वय तथा कौशल के आधार पर तीन प्रकार-मुग्धा, मध्या और प्रगल्भा । क० मं० मुग्धा नायिका है । कविराज विश्वनाथ ने मुग्धा का लक्षण इस प्रकार दिया है प्रथमावतीर्णयौवन-मदनविकारा रतौ वामा ॥ कथिता मृदुश्च माने समधिक लज्जावती मुग्धा ॥५४ अन्य भेदों के आधार पर वह धीरा, स्वीया, कनीयसी, ललिता, आदि नायिका गुणों से सम्बलित है । विवेच्य सड़क में क० म० का सौन्दर्य दो रूपों में चित्रित हुआ है-- १. निसर्ग रमणीया एवं २. विभूषण विभूषिता। प्रथम कोटि का सौन्दर्य राजा एवं विचक्षण की दृष्टि में श्लाघ्य है, द्वितीय विदूषक के अभिमत में श्रेष्ठ है। विचार करने पर प्रथम कोटि का सौन्दर्य ही श्रेयस्कर प्रतीत होता है । महाकवि कालिदास का अभिमत निसर्ग-रमणीयता में ही है-आश्रमाश्री कण्वदुहिता के सौन्दर्य पर कवि मुग्ध है। तन्वङ्गी यक्षिणी विधाता की आद्या-सृष्टि है तो कर्पूर० के निर्माण में दो विधाताओं ने अपना श्रम लगाया है णूणं दुवे इह पआवइणो जम्मि जे देहणिम्मवणजोव्वणदाणदक्खा । एक्को घडेइ पढमं कुमरीणमंग कंडारिऊण पअडेइ पुणो दुईओ ।।१५ सट्टक में सर्वप्रथम भैरवानन्द के योग विद्याबल से उसका अवतरण होता है । राजा और विदूषक की अपूर्व महिलारत्न दर्शन की लालसा को पूर्ण करने के लिए भैरवानन्द उस सुभग सुन्दरी का आनयन करता है । अद्भुत की एकमात्र जननी, नवयौवना, बच्छोम कुमारी का जल विदु-सिक्त शरीरसौन्दर्य आह्लाद्य है। राजा के शब्द-- जं धोआंजणसोणलोअणजुअं लग्गालअग्गं मुहं । हत्थालंबिदकेसपल्लवचए दोल्लंति जं विदुणो। जं एक्कं सिचअंचलं णिवसिदं तं ण्हाणकेलिट्टिढा' आणीदा इअमब्भुदेक्कजणणी जोईसरेणामुणा ।।५५ स्नानावस्था में होने से विभूषण विलेपनादि से रहित उसकी तनुलता महीन गीले वस्त्र के भीतर से यह घोषणा कर रही है कि उसकी दृष्टि सौंदर्य का सर्वस्व है----सुंदेर सव्वस्समिमीअ दिट्ठी' ।५० उसका शरीर कर्पूर रस के समान धवल, ज्योत्स्ना के समान शीतल, खण्बू १९, अंक २ १०९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524576
Book TitleTulsi Prajna 1993 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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