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________________ १. देवी सौन्दर्य पूर्वाचार्यों द्वारा अभ्यहित मंगलाचरण की परंपरा में कवि राजशेखर ने सरस्वती, शिव-पार्वती, कामदेव-रति एवं अन्यत्र चामुण्डा का रमणीय चित्रण किया है सरस्वती-'भई होउ सरस्सईअ'४३ अर्थात सरस्वती का उत्कर्ष हो । यहां सरस्वती का श्लाघ्य-सौन्दर्य अभिव्यजित है। शिव-पार्वती--कुपित-पार्वती को प्रसन्न करने के लिए शिव बार-बार उसके पैरों पर गिर रहे हैं। यहां शिव-पार्वती का मनोरम दृश्य दर्शनीय है : ईसारोस-प्पसाअ-प्पण इसु बहुसो सग्गंगा जलेहि,४४ आमूलं पूरिआए तुहिणकरकलारुप्पसिप्पीअ रुद्दो । जोण्हामुत्ताहलिल्लंणअमउलि-णिहित्तग्ग-हत्थेहिं दोहिं, अग्धं सिग्धं व देंतो जअइ गिरिसुआ-पाअपंकेरुहाणं ।। कामदेव-रति--संसार में सुन्दरता के श्रेष्ठ उपमानों में से कामदेव प्रसिद्ध है। कामदेव का सौन्दर्य कविराजशेखर की दृष्टि में अगोचर कैसे रह जाए? अकलिअ-परिरम्भ विभमाइं अजणिअ-चुंबण-डबराई दूरं । अघडिअ-घण-ताडणाई णिच्चं णमह अणंगरइण मोहणाइं ॥५ चामुण्डा-चतुर्थ जवनिकान्तर में विवाह-प्रसंग से पूर्व भगवती चंडी के भव्य और उदात्त रूप का चित्रण हुआ है । कल्पान्त केलिभवन में स्थित असुरों का रक्तपान करती हुई चामुण्डा का रूप अत्यंत भयंकर है कप्पंत केलिभवणे कालस्य पुरोऽसुराण रुहिरसुरं ।" जअइ पिअंती चंडी परमेट्ठीकवालचसएण ।। २. मानवीय-सौन्दर्य इस कोटि के अन्तर्गत अनेक पात्रों, राजा, विदूषक नायिका रानी आदि के सौन्दर्य का निरूपण किया गया है। राजा-वह कर्पूरमंजरी सट्टक का धीरललित नायक है। कलासक्त, निश्चिन्त, सुखी भोगरसिक, रतिप्रिय, प्रेमी, नारीनाथ, कोमल प्रकृति एवं शृगार युक्त है । दशरूपककार द्वारा लक्षित धीरललित नायक के सभी लक्षणों---'निश्चिंतो धीरललितः कलासक्तः सुखी मृदुः' से पूर्ण है। ___ उसका शारीरिक-सौन्दर्य उत्कृष्ट है । नायिका राजा को देखकर कहती है : खण्ड १९, अंक २ १०७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524576
Book TitleTulsi Prajna 1993 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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