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मण्णे मज्भं तिबलिवलिअं डिभमुटठीअ गेज्भं, णो बाहूहि रमण फलअं वेट्ठिदुं जाइ दोहिं । णेत्तखेत्तं तरुणिपसइदिज्ज माणोवमाणं,
ता पच्चक्खं मह विलिहंतु जाइ एसा ण चित्ते ॥ " भक्तिरसामृतकार ने भी अंग-प्रत्यङ्गों के यथोचित सन्निवेश को ही सौंदर्य कहा है
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भवेत्सौन्दर्यमङ्गानां सन्निवेशो यथोचितम् ।
लोकोत्तर आह्लाद की जनयित्री रसणीयता ही पण्डितराज जगन्नाथ के शब्दों में सौन्दर्य शब्द वाच्य है । "
पाश्चात्य समीक्षकों ने सोन्दर्य पर काफी विचार किया है । सुकरात और प्लुटो की दृष्टि में सुन्दर और मंगल एक ही हैं । अरस्तु निश्चित क्रम, समानता और स्थिरता में सौन्दर्य मानता है। प्लोटिनस कलात्मक- - कुशलता को सौन्दर्य कहता है । कालिदास की यक्षिणी एवं पार्वती कलात्मक कुशलता के निदर्शन हैं । ये सर्वश्रेष्ठ शिल्पी की अनुपम रचना हैं। ऐसा लगता है कि विद्या ने अपनी सम्पूर्ण कला को पार्वती के निर्माण में व्यय कर दिया -- सर्वोपमाद्रव्यसमुच्चयेन यथा प्रदेशं विनिवेशितेन ।
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सा निर्मिता विश्वसृजाप्रयत्नादेकस्थ सौन्दर्य दिदृक्षयेव || " विरह-व्यथिता यक्षिणी विधाता की आद्या सृष्टि है । २° कर्पूर० के निर्माण में विधाता पीछे कहां रहा ? अद्भुत की एकमात्र जननी उन्नतस्तनी किसके हृदय में चित्रवत् प्रतिष्ठित नहीं हो जाती ?
एक्केण पाणिणलिणेण णिवेसअंती, वत्थंचलं घणथणत्थल संसमाणं ।
चित्ते लिहिज्जदि ण कस्स वि संजमंती, अण्णेण चंकमणओ चलिअं कडिल्लं ॥
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जार्ज केले सामंजस्य एवं वस्तु के उपयोग को सौन्दर्य मानता है । विलियम होगार्थ औचित्य, विविधता, सरलता, समानता, एकरूपता, एवं अनुपातादि को सौन्दर्य का प्रमुख गुण मानता है । 123 एडमंडवर्क ने वस्तु विशेष की वर्णगत चारूता, आँगिक - कोमलता एवं उज्ज्वलता को सौन्दर्य माना है ।' २४ उपर्युक्त तथ्य विवेच्य सट्टक में प्राप्त होते हैं । कामिनियों के अंग-अंग विद्यमान सौन्दर्य - मुद्रा किसे स्पृहणीय नहीं है ।
अंगं चंगं णिअगुणगणालंकि कामिणीणं, पच्छाअंती उण तणसिरि भाइ णेवच्छलच्छी । इत्थं जाणं अवअवगभा का वि सुंदेरमुद्दा, मणे ताणं वलइदधणू णिच्चभिच्चो अणंगो ॥
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खण्ड १९, अंक २
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