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संस्कृति का साध्य है - पर्याप्तता ।
गहराई से विचार करने पर ये सभी तत्त्व परस्पर अन्तर्ग्रथित दिखाई
शांति स्थापित नहीं अस्तित्व पर निर्भर
प्रभावित करती है ।
देते हैं । इनमें से किसी एक भी तत्त्व की अवहेलना करके की जा सकती । प्रत्येक तत्त्व का अस्तित्व दूसरे तत्त्व के है और प्रत्येक तत्त्व की शांति दूसरे तत्त्व की शांति को प्रो. गाल्टंग ने ठीक ही लिखा है- “जब हम शांति के विचार-विमर्श करते हैं तो इसका आशय इतना ही नहीं राष्ट्रों के बीच में ही हो, बल्कि शान्ति तो समाज की रग-रग में, मानव जाति में और यहां तक कि प्रकृति में भी शांति व्याप्त होनी चाहिए ।" " ५. हितैक्य का दर्शन
बारे में चर्चा या है कि शांति केवल
भगवान् महावीर ने कहा- -यह हमारा अज्ञान है कि मनुष्य अपने और दूसरे के हितों में टकराव देखता है। सबके हित में ही स्वयं के हित को देखना सही दृष्टिकोण है । भगवान् महावीर के समय तक वनस्पतिकाय की हिंसा न करना भूत - दया का अंग था। आज विज्ञान के माध्यम से हम जानते हैं कि वनस्पति को नष्ट न करके हम वनस्पति पर नहीं, स्वयं अपने पर ही कृपा करते हैं। गहरे आध्यात्मिक अर्थों में किसी का भी अहित करके हम अपना ही अहित करते हैं । विश्व शान्ति के प्रसंग में भी कोई राष्ट्र दूसरे को पराजयी बनाकर अपना भी अहित करता है । अतीत इसका साक्षी है और इस बात की प्रेरणा देता है कि भविष्य में युद्ध या शस्त्र प्रयोग न करने का संकल्प लिया जाए ।" हिरोशिमा व नागासाकी की विभीषिका व ईराक-ईरान युद्धों के अनुभवों के बावजूद आज भी प्रमत्त मानव दूसरों के अधिकारों के हनन करने में लगे हैं, ऐसे ही व्यक्ति शस्त्र प्रयोग करते हैं ।'
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६. नि: शस्त्रीकरण के आधार
६.१ विजातियों के प्रति प्रेम - आयारो के 'शस्त्र - परीज्ञा' अध्ययन में एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि स्थावरों के लिए अहिंसा का प्रतिपादन त्रस-जीवों से पहले किया गया है । स्थावरों में भी वनस्पतिकाय से पहले पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु- काय के प्रति अहिंसा का प्रतिपादन है । इस क्रम में भी एक गहरा रहस्य है -- त्रस जीव के लक्षण हमारे अधिक निकट हैं, इसलिए उनके प्रति अहिंसा का भाव सहज उत्पन्न होता है । स्थावर हमारे विजातीय हैं, इसलिए उनके प्रति अहिंसा की भावना उत्पन्न होने की अहिंसा का मूल है हम विजातीय के प्रति भी निःशस्त्रीकरण का एक प्रमुख आधार भी है । आज जहां अहिंसा की चर्चा होती है, वहां सजातीयों के प्रति विशेष पक्षपात रहता है । यही कारण है कि
संभावना कम है । अहिंसक हों । यही
तुलसी प्रज्ञा
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