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________________ निर्माण, प्रयोग व वितरण, गुट सूचनाएं एकत्र करने के संयंत्र, सेना का संख्यात्मक स्वरूप आदि को नियमित करने से संबंद्ध हो, निःशस्त्रीकरण की श्रेणी में आते हैं ।" पर जैन दृष्टि इससे भिन्न है । भगवान् महावीर के शस्त्रीकरण और निःशस्त्रीकरण संबंधी विचार प्रथम जैन आगम 'आयारो' में संग्रहीत हैं । वहां शस्त्र के दो प्रकार बतलाये गये हैं- द्रव्य शस्त्र और भाव शस्त्र । पाषाण युग से अणुयुग तक जितने भी अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण हुआ है, वे सब द्रव्य शस्त्र हैं । दूसरे शब्दों में निष्क्रिय शस्त्र हैं, उनमें स्वतः प्रेरित संहारक शक्ति नहीं है । सक्रिय शस्त्र जिसे आयारो में भाव शस्त्र कहा गया है—असंयम है ।' विध्वंस का मूल असंयम ही है । निष्क्रिय शस्त्रों में प्राण फूंकने वाला तथा की मूलभूत प्रेरणा असंयम ही है । शस्त्रों के निर्माण संयुक्त राष्ट्र द्वारा की गई यह घोषणा- "युद्ध मस्तिष्क में लड़ा जाता है, फिर समरांगण में' इसी पुनरुच्चारण है । इस भावशस्त्र ( असंयम) को भली भांति समझकर छोड़ने का प्रयत्न करना निःशस्त्रीकरण है । पहले मनुष्य के भावशस्त्र के स्वर का ३. शस्त्रीकरण के हेतु आयारो में शस्त्रीकरण के चार हेतु बतलाये गये हैं १. वर्तमान जीवन के लिए २. प्रशंसा, सम्मान और पूजा के लिए ३. जन्म, मरण और मोचन के लिए ४. दुःख प्रतिकार के लिए । जीवन की सुरक्षा के लिए मनुष्य - 'जीवो जीवस्य जीवनम्' - यह मान कर अपने जीवन के लिए दूसरे जीवों का वध और शोषण करता है । प्रशंसा या कीर्ति के लिए प्रतियोगितात्मक प्रवृत्तियां करता है । सम्मान के लिए मनुष्य धन का अर्जन, बल का संग्रह आदि प्रवृत्तियां करता है । पूजा पाने के लिए मनुष्य युद्ध आदि विविध प्रवृत्तियां करता है । भावी जन्म के लिए अनेक हिंसात्मक प्रवृत्तियां, मारण के लिए वैर-प्रतिशोध तथा अन्य प्रवृत्तियां एवं दुःख प्रतिकार के लिए दवा व रसायनों हेतु अनेक पशु-पक्षियों की हिंसा करता है । इन सभी कारणों के लिए वह शस्त्रीकरण करता है । शस्त्रीकरण के मूल में इन कारणों को देखकर यह कहा जा सकता है शस्त्रीकरण सुख का हेतु नहीं दुःख का मूल है। इसी संदर्भ में वितैषणा और लोषणा को छोड़ने पर भी बल दिया गया है । इच्छा ( असंयम ) दुःख का मूल है । प्रत्येक व्यक्ति अपनी सुख-सुविधा को सर्वोपरि मानता है । जो वृछ उसके तुलसी प्रज्ञा ९४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524576
Book TitleTulsi Prajna 1993 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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