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है कि उत्तम या श्रेष्ट पुरुष बनने के लिए मांस का त्याग करना चाहिए । किन्तु प्रश्न है कि कोई व्यक्ति उत्तम या श्रेष्ठ श्रेणी का व्यक्ति बनें तो क्यों बने ? प्रत्युत्तर में कहा जा सकता है कि "धर्म" को धारण करने के लिए । पुनः प्रश्न उठता है धर्म क्या है ? जवाब में कहा गया है सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ही धर्म है ।" और धर्म से मोक्ष की प्राप्ति होती है किन्तु जिसे मोक्ष नहीं चाहिए उसे धर्म को धारण करने की क्या आवश्यकता है अर्थात् जिसे मोक्ष नहीं चाहिए उसके मांस खाने में क्या दोष है ? यदि कुछ समय के लिए यह मान लें कि किसी व्यक्ति को मोक्ष नहीं चाहिए, तब धर्म को धारण करने की कोई आवश्यकता नहीं है, तब भी मांस भक्षण त्याज्य है, क्योंकि वह व्यसन है और जो भी व्यसन है वह दुःख देने वाला तथा त्याज्य होता है अर्थात् जिस प्रकार जुआ, वेश्या, शराब, परस्त्री सेवन आदि व्यसन है उसी प्रकार मांस भक्षण व्यसन है । मांस भक्षण व्यसन इसलिए भी है कि इसके खाने से दर्प बढ़ता है, दर्प से शराब पीने की इच्छा होती है, जिससे वह शराब पीता है और शराब पीकर जुआ, वेश्या, परस्त्री आदि सेवन करता है । इनसे दुःख की प्राप्ति होती है । यहां कहा जा सकता है कि इन व्यसनों से दुःख नहीं होता है, अपितु इनसे सुख मिलता है । तब इन्हें त्याज्य कैसे कहा जा सकता है । इसके समाधान में कहा गया है कि जैसे इनसे आपको सुख मिलता है वैसे ही अन्य जीवों को दुःख होता है और जैसे आप सुख चाहते हैं वैसे ही दूसरे प्राणी भी सुख चाहते हैं । अत: दूसरों के प्रति वैसा ही व्यवहार करें जैसा आप दूसरों से चाहते हैं । जिस प्रकार आपको सुख प्रिय है और दुःख अप्रिय है, उसी प्रकार दूसरे प्राणियों को भी सुख प्रिय है और दुःख अप्रिय है" और मांस भक्षण जीवों को दुःख तथा पीड़ा पहुंचाता है ।
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दूसरे, जिस प्रकार आप मरना नहीं चाहते, उसी प्रकार दूसरे प्राणी भी मरना नहीं चाहते अर्थात् जिस प्रकार आपको अपना जीवन प्रिय है उसी प्रकार अन्य प्राणियों को अपना जीवन प्रिय है । यही नहीं, इसके साथ प्रत्येक जीव “अभय” चाहता है अर्थात् जिस प्रकार आपको अभय प्रिय है और भय अप्रिय है उसी प्रकार अन्य प्राणियों को अभय प्रिय है अर्थात वे भी अभय चाहते हैं भय नहीं चाहते हैं ।" अतः किसी जीव की हिंसा नहीं करनी चाहिए। मांस खाने से हिंसा होती है और हिंसा से जीव भयभीत होते होते हैं । अतः मांस त्याज्य है ।
संक्षेप में कहा जा सकता है कि मांस भक्षण से हिंसा होने के कारण, अन्न की अपेक्षा राग अधिक होने के कारण, क्रूरता उत्पन्न करने के कारण, स्वभाव से अपवित्र होने के कारण, दुःख देने वाला होने के कारण, अभक्ष्य,
खण्ड १९, अंक २
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