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________________ अनुभूति उसी प्रकार की होती है जिस प्रकार की त्रस जीवों को होती है ? क्या नारकीय जीवों के इद्रियां होती हैं ? यदि होती हैं तब कितनी होती है ? यहां मूल प्रश्न यह है कि स्वर्ग और नरक की सत्ता का प्रमाण क्या है ? यह कैसे कहा जाये कि स्वर्ग और नरक की सत्ता है ? यदि कुछ समय के लिए इस कल्पना को, स्वर्ग एवं नरक है तथा वहां सुख-दुःख है, नहीं भी स्वीकार करें तब भी यह सिद्ध नहीं होता है कि मांस खाने योग्य है, क्योंकि वह स्वभाव से अपवित्र है । उसकी उत्पत्ति मल-मूत्र युक्त तथा मज्जा, हड्डी आदि सप्त धातु से निर्मित अपवित्र शरीर से होती है और वह अनन्त जीवों का आश्रय है ।' प्रश्न है कि पवित्रता तथा अपवित्रता का मापदण्ड १४ क्या है ? मांस अपवित्र तथा पीब, रक्त, चर्बी एवं दुर्गन्धयुक्त होने के कारण, छोटे-छोटे कीड़ों के समूह से भरा हुआ होने के कारण अभक्ष्य है । " दूसरे प्रत्येक जीव इस संसार में विभिन्न योनियों में जन्म ले चुका है और प्रत्येक जन्म में उसके माता-पिता, भाई बहन, पुत्र-पुत्री आदि सम्बन्धी होते हैं तथा प्रत्येक जीवन में वे ही जीव, जो पूर्व जन्म के सम्बन्धी थे, सम्बन्धी नहीं होते हैं अर्थात् जो पूर्व जन्म में माता-पिता थे, वे ही माता-पिता इस जीवन में हो ऐसा आवश्यक नहीं है तथा यह भी आवश्यक नहीं है कि जीव प्रत्येक जन्म में मनुष्य योनि में आये । अब यदि जिस पशु का मांस खाते हैं, हो सकता है वह पूर्वजन्म में हमारा कोई सम्बन्धी हो अर्थात् जिस प्रकार मांस खाने वाले अपने माता-पिता का मांस नहीं खाते हैं, उसी प्रकार अन्य जीवों का मांस भी नहीं खाना चाहिए, क्योंकि हो सकता है कि वे हमारे पूर्व जन्मों के माता-पिता हों ।" अत मांस अभक्ष्य और निद्य है । ऐसा होते हुए भी अर्थात् मांस के स्वभाव से अपवित्र, अभक्ष्य और निद्य होते हुए भी, यदि कोई मांस खाता है तो उसके चरित्र का ह्रास होता है अर्थात् ऐसे व्यक्ति का चारित्र दुश्चरित्र होता है ।" प्रश्न उठता है कि क्या मांस त्याग देने से चारित्र सम्यक् चारित्र हो जाता में ? प्रत्युत्तर में कहा जा सकता है कि सम्यक चारित्र की आवश्यक शर्तों में मांसहार त्याग एक शर्त है । किन्तु प्रश्न है कि चारित्र तथा मांस में क्या सम्बन्ध है ? यदि किसी व्यक्ति का चारित्र दुश्चारित्र हो तो क्या हो और सन्यक् चारित्र हो तो क्यों हो ? इस प्रश्न के जवाब में कहा गया है कि से मुक्त हो सकता है तथा उत्तम या श्रेष्ट पुरुष बन सकता है । यहां प्रश्न उठता है कि असम्यक् चारित्र वाला दुःखों से मुक्ति क्यों नहीं पा सकता है ? व्यक्ति दुःखों से मुक्ति क्यों चाहता है तथा क्यों वह श्रेष्ठ पुरुष बनना चाहता है ? जो मांस खाता है वह कौनसी श्रेणी का व्यक्ति है ? जवाब में कहा गया है कि मांस खाने वाला अधम श्रेणी का व्यक्ति है ।" इससे फलित होता सम्यक् वाला ही दुःखों ८५ Jain Education International For Private & Personal Use Only तुलसी प्रज्ञा www.jainelibrary.org
SR No.524576
Book TitleTulsi Prajna 1993 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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