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बकरा एक इन्द्रिय जीव नहीं है । और फिर यदि बकरे की जाति के जीव हैं तब बकरे की तरह उन जीवों का भी प्रत्यक्ष ज्ञान होना चाहिए ? किन्तु ऐसा नहीं होता है।
यदि कुछ समय के लिए यह मान लिया जाए कि मांस खाने से उसके आश्रय में रहने वाले जीवों की हिंसा होती है, किन्तु यदि जिस प्रकार पानी को अग्नि से गरम कर लेने पर वह जीव रहित हो जाता है और पीने योग्य माना जाता है या जिस प्रकार उड़द आदि के बीजों को मूंज लेने पर वे जीव रहित हो जाते हैं, उसी प्रकार मांस को अग्नि से पका लेने पर वह जीव रहित हो जाता है । तब उसके खाने में क्या दोष है ? प्रत्युत्तर में कहा गया है कि ऐसा मानना युक्ति संगत नहीं है क्योंकि मांस चाहे कच्चा हो या पका हुआ उसमें अनन्त जीव उत्पन्न होते रहते हैं। यहां प्रश्न उठता है कि पानी या अन्य जीवयुक्त पदार्थों को अग्नि पर पका लेने पर वे जीव रहित क्यों हो जाते हैं और मांस जीव रहित क्यों नहीं होता है ? भूजे हुए बीजों में जीव की उत्पत्ति क्यों नहीं होती है ? अग्नि द्वारा पानी या अन्य पदार्थों को, जिनमें जीव हों, गरम करने पर जीव उन पदार्थों को क्यों छोड़ देते हैं ? क्या पानी को गरम करने या उड़द आदि के बीजों को भंजने पर हिंसा नहीं होती है ? क्या मांस की कोई ऐसी अवस्था हे जिसमें वह जीव रहित होता है ? जवाब में कहा गया है कि मांस की कोई ऐसी अवस्था नहीं है जिसमें जीव नहीं होता है । पुनः प्रश्न उठता है कि क्या मांस को सूखा लेने पर भी उसमें जीव उत्पन्न होते रहते हैं ? अर्थात् जैसे वनस्पति को सूखा लेने पर वह जीव रहित हो जाती है उसी प्रकार मांस को सूखा लेने पर क्या वह जी-रहित हो जाता है ? जवाब में कहा गया है कि मांस को सूखा लेने पर भी उसमें जीव रहते हैं। प्रश्न उठता है कि मांस कभी जीव-रहित क्यों नहीं होता है?
यदि ऐसा माना जाए कि मांस त्रस जीवों के शरीर जनित पदार्थ है या उनके शरीर का अंश है, तब गौ आदि का दूध पीने योग्य कैसे हो सकता है ? क्योंकि दूध तथा मांस का कारण एक है तथा दूध को निकाल लेने के पश्चात् उसमें अनेक जीव उत्पन्न भी होते हैं। ऐसी स्थिति में दूध पीने से हिंसा होती है । तब दूध पीने योग्य और मांस खाने के अयोग्य क्यों है ? समाधान में कहा गया है कि यह कहना ठीक है कि दूध और मांस का कारण एक है, किन्तु दूध तथा मांस दोनों एक नहीं है। इसलिए दूध पीने योग्य तथा मांस खाने के अयोग्य है, जैसे सर्प की मणि तथा विष का कारण एक है. फिर भी मणि से विष दूर होता है तथा विष से मृत्यु । एक अन्य उदाहरण दिया जा सकता है, जैसे कारस्कर नामक विष वृक्ष का पत्ता आयुवर्धक होता है तथा उसकी जड़ मृत्यु का कारण होती है। और यह ठीक है कि दूध में अनेक जीव उत्पन्न होते हैं किन्तु दूध भी निकाल लेने के
तुलसी प्रज्ञा
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