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________________ के इन्द्रियों वाले जीवों उत्पन्न होता है या किन्हीं विशेष प्राणियों के शरीर से ? इस प्रश्न के समाधान में कहा गया है कि मांस दो इन्द्रियों तक जीवों के शरीर में होता है । यहां प्रश्न है कि एक इन्द्रिय जीवों के शरीर में मांस क्यों नहीं होता है ? जिस प्रकार दो या दो से अधिक इन्द्रियों वाले जीवों के शरीर में जीव व्याप्त रहता है। जिस प्रकार दो या दो से अधिक इन्द्रियों वाले जीवों को पीड़ा होती है उसी प्रकार एक इन्द्रिय जीवों को पीड़ा होती है । और सभी जीव मूलरूप में समान स्वभाव वाले हैं । इससे स्पष्ट होता है कि सभी जीवों में समानता होने के कारण सभी जीवों के शरीर में मांस होना चाहिए । अब यदि एक इन्द्रिय जीवों के शरीर के मांस नहीं उठता है कि एक इन्द्रिय जीवों तथा दो से पांच शरीर में क्या भेद है जिसके कारण दो या दो से अधिक के शरीर में मांस होता है और एक इन्द्रिय जीवों के शरीर में मांस नहीं होता है । क्या कोई जीव ऐसा है जिसके एक भी इन्द्रिय नहीं है । यदि है तब वह कौनसा जीव है और नहीं तब क्यों नहीं है ? क्या केवली, नारकी और देव योनि के जीवों के शरीर में मांस होता है ? यदि नहीं तब क्यों और यदि होता है तब उनके मांस में तथा सामान्य जीवों के मांस में क्या भेद है ? क्या सभी जीवों के मांस में कोई श्रेणीगत भेद है या एक श्रेणी का है ? अर्थात भ्रमर, पिपीलिका, मच्छर, मक्खी, जूं, घोघा आदि का मांस, मनुष्य, पशु, पक्षी आदि के मांस के समान ही होता है या नहीं ? एक अन्य प्रश्न यह है कि जीवों के शरीर का वह अंश विशेष जिसे मांस कहते हैं । वह जीव से अलग होने पर मांस कहलाता है या जीव के साथ रहते हुए भी मांस कहलाता है ? मांस तथा जीव में क्या सम्बन्ध है ? आदि प्रश्न हैं जिनके समाधान से ही मांस का स्वरूप स्पष्ट हो सकता है । मूल विचारणीय प्रश्न यह है कि मांसाहार का निषेध या त्याग क्यों करना चाहिए। माँसाहार निषेध या त्याग के लिए जैन दार्शनिकों ने अनेक कारण बतलाये हैं, जिनमें से मुख्य है हिंसा अर्थात् मांस खाने से जीवों की हिंसा होती है, क्योंकि मांस जीवों का घात किये बिना प्राप्त नहीं होता है । " हिंसा दो प्रकार की होती है— द्रव्यहिंसा और भावहिंसा | मांस खाने से दोनों प्रकार की हिंसा होती है, क्योंकि मांस के लिए किसी प्राणी का घात करना पड़ता है, जो द्रव्यहिंसा है और हिंसा सम्बन्धी विचारों के बिना सम्भव नहीं है, जो भावहिंसा है अर्थात् हिंसा सम्बन्धी विचारों का उत्पन्न होना ही भाव - हिंसा है। दूसरे, मांस से आत्मा में क्रूरता उत्पन्न होती है और क्रूरता का उत्पन्न होना भी भावहिंसा है। यहां प्रश्न उठता है कि क्या एक इन्द्रिय जीवों को खाने से हिंसा नहीं होती है ? यदि नहीं होती है तब ऐसा क्यों ? और यदि हिंसा होती है तब जिस प्रकार मांसाहार त्याज्य है उसी प्रकार एक ૪ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only माना जाये तब प्रश्न इन्द्रियों तक के जीवों के www.jainelibrary.org
SR No.524576
Book TitleTulsi Prajna 1993 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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