________________
"जैन-दर्शन में मांसाहार-निषेध"
- राजवीरसिंह शेखावत
मनुष्य को किस प्रकार का आहार लेना चाहिए और किस प्रकार का आहार नहीं लेना चाहिए ? यह प्रश्न एक शृद्ध बौद्धिक प्रश्न नहीं है, किन्तु फिर भी एक सीमा तक उस प्रश्न को विचार या चिन्तन का विषय बनाया जा सकता है और बनाया गया है। यद्यपि इस प्रश्न के समाधान को सांस्कृतिक और भौगोलिक परिस्थितियां प्रभावित करती हैं, किन्तु यदि कुछ समय के लिए सांस्कृतिक और भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में नहीं भी लायें या हटा दें, तब भी इसके समाधान के रूप में दो विरोधमत, एक शाकाहारवादियों का तथा दूसरा मांसाहारवादियों का, हैं जो अपने-अपने मत के समर्थन में तर्क या कारण देते हैं । भारतीय धर्म और दर्शन में जैन धर्म और दर्शन एक मात्र ऐसा मत है जो पूर्णतः शाकाहारवादी है तथा मांसाहार का निषेध करता है।
___जैन दार्शनिक मांसाहार-निषेध के पक्ष में तर्क देते हैं, यह जानने के पहले, इस प्रश्न, मांस क्या है अथवा किसको मांस कहें और किसको मांस नहीं कहें, का समाधान अपेक्षित है। मांस क्या है, इस प्रश्न के समाधान में कहा गया है कि मांस प्राणियों का शरीर जनित पदार्थ है। यहां प्रश्न उठता है कि शरीर-जनित पदार्थ से क्या तात्पर्य है ? क्या मांस प्राणियों के शरीर से उत्पन्न होता है ? यदि उत्पन्न होता है तब यह सिद्ध होता है कि मांस कुछ और है तथा शरीर कुछ ओर अर्थात् मांस तथा प्राणियों का शरीर एक प्रकार का पदार्थ नहीं है। किन्तु क्या ऐसा मानना युक्ति संगत है ? मांस तथा शरीर में क्या सम्बन्ध है ? क्या शरीर से उत्पन्न होने वाले सभी पदार्थ मांस है ? शरीर से उत्पन्न होने वाले सभी पदार्थों को मांस नही माना जा सकता है, क्योंकि मल-मूत्र आदि भी शरीर-जनित हैं जो मांस की श्रेणी में नहीं आते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि किसी पदार्थ विशेष को मांस माना जा सकता है। किन्तु वह पदार्थ विशेष क्या है जो शरीर जनित है तथा जिसे मांस कहा जाता है ?
एक अन्य प्रश्न यह है कि मांस सभी प्राणियों के शरीर से
खण्ड १९, अंक २
८३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org