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________________ और जागरण युक्तिसंगत होता है उसका योग दुःख का नाशक होता है "युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु । युक्तस्वप्नावबोधस्य योगोभवति दुःखहा ।।' 1199 गीता में श्रीकृष्ण ने आहार के सात्त्विक, राजस और तामस इन तीन भेदों का उल्लेख करते हुए सात्त्विक आहार की प्रशंसा की है । उन्होंने कहा है कि आयु, मनोबल, शारीरिक बल, सुख तथा प्रेम को बढ़ाने वाले रसयुक्त, स्निग्ध, सारवान् तथा मनोनुकूल आहार सात्त्विकों को प्रिय होता है— "आयुः सत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः । रसाः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्त्विक प्रियाः ।। १२ उन्होंने तो तामस आहार के अन्तर्गत भी मांस भक्षण आदि का जिस 'अमेध्य' शब्द उल्लेख नहीं किया है। हां, तामस के अन्तर्गत उन्होंने का उल्लेख किया है, उसके अन्तर्गत मांस भक्षण आदि को माना जा सकता है । श्रीकृष्ण के अनुसार जो व्यक्ति सात्त्विक नहीं होगा, वह सभी जीवों पर दयावान् नहीं हो सकता है। वही ज्ञान सात्त्विक ज्ञान है जिसमें कोई व्यक्ति सभी जीवों को एक समान समझता है " सर्वभूतेषु येनैकं भावमव्ययमीक्षते । अविभक्तं विभक्तेषु तज्ज्ञानं विद्धिसात्विकम् ॥ ३ श्रीकृष्ण ने तो यहां तक कहा है कि वही व्यक्ति मेरी परमा भक्ति को पा सकता है जो सभी जीवों को एक समान मानता है- " समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्त लभते पराम् ||" अन्यत्र भी उन्होंने कहा है कि जो सभी जीवों के प्रति द्वेष की भावना नहीं रखता है तथा उनके प्रति मंत्री और करुणा को रखता है, वही मेरा भक्त है ८० "अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च । १४ श्रीकृष्ण ने उसी तरह के मानव को सच्चा मानव माना है जिसमें अभिमान का अभाव हो, दम्भ का अभाव हो, अहिंसा का भाव हो, क्षमाभाव हो, मन-वाणी आदि की सरलता हो, गुरु सेवा का भाव हो, शौच की भावना हो, अन्तःकरण की स्थिरता का भाव हो तथा आत्म-निग्रह की भावना हो Jain Education International For Private & Personal Use Only तुलसी प्रज्ञा www.jainelibrary.org
SR No.524576
Book TitleTulsi Prajna 1993 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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