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________________ हिंसा | तो अध्वर शब्द का अर्थ होगा -- अहिंसा । इस तरह यज्ञ के लिए बहुमान्य पर्यायवाची शब्द अहिंसा अर्थ को बोधित करने वाला है तो किस तरह वैदिक यज्ञों में हिंसा को स्वीकार करने वाला माना जाए ? वैदिक साहित्य में ही 'न हिस्यात सर्वा भूतानि' 'न वै हिंस्रो भवेत् ' आदि वाक्य अहिंसावादिता की भावना के ही पोषक हैं । स्याद्वादमंजरी तथा षड्दर्शनसमुच्चय में उद्धृत होने वाले निम्नलिखित वाक्य में कितनी सत्यता है " अन्धे तमसि मज्जामः पशुभिर्ये यजामहे | हिंसा नाम भवेदधर्मो न भूतो न भविष्यति ।। जो पशुओं से यज्ञ करते हैं वे घोर अन्धकार में निमग्न होते हैं । हिंसा नामक धर्म तो न कभी रहा है और न ही कभी होगा । उपर्युक्त वचन में कितनी सत्यता है । कोई भी धर्म क्या कभी भी हिंसा जैसी गहित भावना को अपने धर्म के अन्दर समाविष्ट कर सकता है ? कदापि नहीं । यह तो जिह्वा की लोलुपता के कारण कुछ लोगों ने बाद में चलकर हिंसा को धर्म के साथ जोड़ देने का दुष्प्रयास किया है । भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने 'वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति' नामक अपने नाटक में ऐसे लोगों को आड़े हाथों लिया है । हमारे प्राचीन ऋषियों ने अन्न की महिमा का खूब बखान किया है और जब उन्होंने 'कलावन्नगताः प्राणाः' कहकर कलियुग के मानवों के लिए अन्न को महत्त्वपूर्ण माना है तो वैसे ऋषियों से ऐसी आशा ही नहीं की जा सकती है कि वे सत्युग, त्रेता अथवा द्वापर के मानवों के लिए मांस भक्षण का विधान करते । गीता में तो कहा ही गया है कि अन्न से ही जीवों की उत्पत्ति होती है "अन्नाद् भवन्ति भूतानि । ११८ वस्तुतः गीता के वचन पर तंत्तिरीय उपनिषद् के वचन का प्रभाव है जिसमें कहा गया है कि अन्न से ही ये सभी जीव उत्पन्न होते हैं और फिर अन्न से ही वे जीवित रहते हैं "अन्नाद्येव खल्विमानि भूतानि जायन्ते, "अन्नेन जातानि जीवन्ति ॥ "" ور छान्दोग्य उपनिषद् में भी आहार की शुद्धि से ही मानसिक शुद्धि की बात कही गयी है। खण्ड १९, अंक २ आहार शुद्ध सत्त्वशुद्धि: । ' गीता में भी कहा गया है कि जिसका आहार, विहार, कर्म, स्वप्न Jain Education International | ''१० For Private & Personal Use Only ७९ www.jainelibrary.org
SR No.524576
Book TitleTulsi Prajna 1993 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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