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पाया । रानी वियोग से दु:खी राजा आर्त ध्यान करता हुआ कुछ दिनों में मर गया।
इधर वे तीनों स्वेच्छाचार करती हुई इधर-उधर भ्रमण करती रहीं । रानी के एक दस वर्ष का पुत्र भी था, लेकिन रानी को उसकी भी कभी याद नहीं आई । रानी और दासी जोगनी का वेष धारण कर इधर-उधर भटकती रहीं। ये रात-दिन मदिरा पीने लगीं तथा मांस भी खाने लगीं । मदनवती तो अपनी पूरी जवानी पर थी। वह भी ब्राह्मण और चाण्डाल सबके साथ व्यभिचार करने लगी। एक बार ये तीनों अवंती देश पहुंची। वहां उन्होंने एक मुनि को आहार के लिए जाते देखा । रानी की इच्छा उसके साथ विषय सेवन की हुई । वे तीनों उस मुनि के साथ छेड़छाड़ करने लगीं। मुनि महाराज अन्तराय समझ कर वापस चले गये और जंगल में ध्यान लगाकर बैठ गये । इन तीनों से रहा न गया । ये तीनों शाम को जंगल पहुंच गईं तथा रातभर कुचेष्टा करती रहीं कि मुनि इनके साथ विषय सेवन करें। ये निर्वस्त्र होकर मुनि से लिपटने लगीं। लेकिन मुनि महाराज बिल्कुल भी विचलित न हुये । ये तीनों रातभर मुनि महाराज को यातना देती रहीं। रानी के कहने, उकसाने पर दासी तो
और भी अधिक कुचेष्ठा करने लगी। मुनि महाराज इसे उपसर्ग मान कर निश्चल रहे । रति समाप्त होने लगी। अपने मन्तव्य में सफल न होने के बाद ये तीनों वहां से भाग गईं।
इन तीनों के अन्तिम समय बहुत कष्ट में व्यतीत हुये। दासी को पूरे शरीर में कोढ़ हो गया और मरकर वह नरक में गई। नरक में नाना प्रकार की यातनायें सहने के बाद वह समय पूरा करके तिर्यंच पर्याय में उत्पन्न हुई। पहले वह मार्जारी हुई, फिर शूकर, फिर कूकर और फिर कुर्कट । उधर वे दोनों भी तिर्यंच गति में भ्रमण करती हुई कुर्कट हो गईं। कर्म योग से ये तीनों फिर एक साथ मिल गईं । इनकी यह दशा अपनी कुचेष्टाओं तथा मुनि महाराज को कष्ट यातनायें देने के कारण ही हुई।
अवन्ती देश में उज्जैनी नगरी के निकट एक ग्राम में एक किसान परिवार रहता था। कर्म योग से वे तीनों कुकुट मर कर इस किसान के घर पुत्रियों के रूप में पैदा हुईं । लेकिन ये तीनों बहुत ही अपशगुनी थीं। जब ये मां के गर्भ में आईं तो सारा धन नष्ट हो गया और जब इनका जन्म हुआ तो माता चल बसी । बचपन में पड़ौसिन भी मर गई। और जब ये थोड़ा-थोड़ा चलने लगीं तो सारा गांव ही उजड़ गया। बड़ी होने पर तीनों कन्याओं ने बहुत दुःख पाये । भूख-प्यास वेदना सहती हुई ये नगर और ग्राम भटकती रहीं। ये भ्रमण करती हुई पुहपपुर : पुष्पपुर) जा पहुंची।
उन दिनों वहां एक मुनिराज विराजमान थे। ये महाराज बहुत विद्वान थे और अवधिज्ञानी भी थे । नगर के सभी लोग इनके दर्शन के लिए
खण्ड १९, अंक २
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