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________________ आचार्य कुन्दकुन्द का अनेकान्त दर्शन - डॉ. अशोककुमार जैन भारतीय संस्कृति धर्मप्रधान संस्कृति है। यहां की पुण्य वसुन्धरा पर अनेक विभूतियों ने जन्म लेकर अपने को आध्यात्मिक कसौटी पर कसकर उससे प्राप्त अनुभव के परिणामों को रखकर अज्ञानान्धकार से भ्रमित मनुष्यों को ज्ञानालोक प्रदान कर सत्य का समीचीन मार्ग प्रशस्त कराया। उनमें श्रमण संस्कृति के महान दिगम्बर जैनाचार्य कुन्दकुन्द का नाम विशेष श्रद्धा के साथ स्मरण किया जाता है। सत्य की प्राप्ति ही जीवन का सर्वोपरि लक्ष्य है और उसकी प्राप्ति में ही परम सुख है । जैनदर्शन का प्राणतत्व अनेकान्त है । इसकी सुदृढ़ नींव पर ही आचार और विचार का सुरम्य प्रासाद स्थित है । जैसी दृष्टि होती है, वैसी ही सृष्टि होती है। जैन वाङमय के अनुशीलन करने से स्पष्ट है कि अनेकान्त दृष्टि सत्य पर आधारित है। सत्य को एक ही दृष्टि से देखने वाला पूर्णता को प्राप्त नहीं हो सकता । अनेकान्तवादी वस्तु के स्वरूप को विभिन्न दृष्टि बिन्दुओं से देखता है। आचार्य कुन्दकुन्द द्वारा प्रणीत ग्रन्थों में अनेक स्थानों पर अनेकान्तास्मक बस्तु स्वरूप का निदर्शन होता है । समयसार ग्रंथ में आचार्य अमृतचन्द स्याद्वाद अधिकार में लिखते हैं कि 'स्माद्वाद सब बस्तुओं को साधने वाला एक निर्बाध अर्हत्सर्वज्ञ का शासन (मत) है। वह सर्व वस्तु अनेकान्तात्मक है इस प्रकार उपदेश करता है क्योकि समस्त वस्तु अनेकान्त स्वभाव वाली हैं। अनेकान्त के स्वरूप के सम्बन्ध में वे लिखते हैं कि जो वस्तु सत्स्वरूप है, वही वस्तु असत्स्वरूप है, जो वस्तु नित्यस्वरूप है वही वस्तु अनित्यस्वरूप है। इस प्रकार एक वस्तु में वस्तुपने की उपजाने वाली परस्पर बिरुद्ध दो शक्तियों का प्रकाशित होना अनेकान्त है ।। यद्यपि आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रंथों में वस्तुस्वरूप की संसिद्धि हेतु मा० समन्तभद्र, आ० अकलंकदेव, आ० विद्यानन्दि आदि आचार्यों जैसी दार्शनिक शैली तो नहीं प्राप्त होती परन्तु वस्तु स्वरूप के निरूपण में समयसार ग्रंथ में निश्चयनय एवं व्यवहारनय की दृष्टि तथा प्रवचनसार और पंचास्तिकाय खण्ड १९, अंक २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524576
Book TitleTulsi Prajna 1993 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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