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________________ ने कुन्दकुन्द के व्यक्तिगत नाम का उल्लेख अपने ग्रन्थों में नहीं किया। दशमी शताब्दी के टीकाकार विद्वान् अमृतचन्द्र एवं जयसेन (१२ वीं) के पूर्व कुन्दकुन्द के नाम का उल्लेख साहित्य में न होना आश्चर्य और अन्वेषण का विषय परवर्ती जैन साहित्य में जिन ग्रन्थों में प्रमुख रूप से आचार्य कुन्दकुन्द को नामपूर्वक आदर सहित स्मरण किया गया है, उनमें से कतिपय के नाम इस प्रकार हैं १. हरिवंशपुराण (धर्मकीर्ति) २. सुदर्शनचरित्र (मुनि विद्यानन्दि) ३. सोमसेन पुराण ४. मेघावी धर्म संग्रह श्रावकाचार ५. जिन सहस्रनामटीका (अमरकीतिसूरि) ६. सिद्धभक्ति की टीका (प्रभाचन्द्र) ७. दर्शनसार (देवसन) ८. ज्ञानप्रबोध ९. षट्प्राभृतटीका (श्रुतसागरसूरि) १०. पाण्डवपुराण (शुभचंद्र) ११. आराधनाकथाकोष (ब्रह्मनेमिदत्त) इस ग्रन्थ सूची में और वृद्धि हो सकती है। किन्तु परवर्ती जैन साहित्य में कुन्दकुन्द के प्रभाव को रेखांकित करने के लिए तलस्पर्शी ज्ञान और श्रम की आवश्यकता है। कुन्दकुन्द जैसे समर्थ आचार्य का भारतीय मनीषा ने क्या उपयोग किया, यह उजागर होना ही चाहिए। सन्दर्भ : १. जैन, शीतलचन्द्र ; “आचार्य कुन्दकुन्द का तत्वार्थसूत्र पर प्रभाव' नामक लेख, महावीर जयन्ती स्मारिका, १९८८, पृ० २/१०५ २. न्यायावतारवार्तिक की प्रस्तावना ३. मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन, वाराणसी, १९८७ प्रास्ताविक, पृ० १७ ४. "रयणसार"--आ० कुन्दकुन्द की मौलिक कृति-नामक श्री विद्यानन्दजी ___ का लेख, वीरवाणी (जयपुर) १९७३ ५. पं० सुखलाल संघवी एवं दोशी, सन्मतिप्रकरण, प्रस्तावना, पृ० ४०-४१ (१९६३, अहमदाबाद) ६. सम्मइसुतं, नीमच १९७८ प्रस्तावना, पृ० ९-१० ७. प्रवचनसार, आगास, १९६४, प्रस्तावना, पृ० १२४ खण्ड १९, अंक २ ५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524576
Book TitleTulsi Prajna 1993 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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