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________________ समयसार - आदा खु मज्झणाणं आदा मे दंसणं चरितं च । आदा पच्चक्खाणं आदा मे संवरो जोगो ॥ २७७ || योगसार - अप्पा दंसणु णाणु मुणि अप्पा चरणु वियाणि । अप्पा संजम सील तर अप्पा पच्चक्खाणि ॥८१॥ ८. कुमारकृत कार्तिकेयानुप्रेक्षा : बारह अनुप्रेक्षाओं का विस्तार से प्राकृत में वर्णन करने वाला ग्रन्थ कुमारकृत कार्तिकेयानुप्रेक्षा है । इस ग्रन्थ में पूर्ववर्ती अनुप्रेक्षा सम्बन्धी साहित्य का पर्याप्त प्रभाव दृष्टिगोचर होता है । डा. ए. एन. उपाध्ये ने अपनी विद्वतापूर्ण भूमिका में इस पर पर्याप्त प्रकाश डाला है । कुन्दकुन्द की बारस - अनुप्रेक्षा की जो गाथाएं कार्तिकेयानुप्रेक्षा में समानता लिए हुए हैं, उनकी संख्या इस प्रकार है बा. अनु.- गाथा - ४, ५, ८, ९, ११, १३, २४ से २९, २३, ४३, ४७, ६७ ६९, एवं ७० । कार्ति. अनु. -गाथा -६, ८, २१, २६, २८, ३०, ३१, ८२, ८३, ८९, १०४ ३०५, ३०६ एवं ३९३ । इनमें से एक उदाहरण द्रष्टव्य है कुन्दकुन्द - सा पुण दुविहाणेया सकालपक्का तवेण कयमाणा । चदुर्गादियाणं पढमा वयजुताणं हवे विदिया ||६७ || कीर्तिकेय - गा. १०४ में केवल एक शब्द में अन्तर है । 'चदुगदियाणं' के स्थान पर "चादुगदीण" पाठ प्रयुक्त है । ६. अन्य ग्रन्थों से तुलना आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थों की कई गाथाएं उपर्युक्त प्रसिद्ध आचार्यों की रचनाओं के अतिरिक्त अन्य परवर्ती ग्रन्थों में भी प्राप्त होती हैं ।" कुन्दकुन्द के " प्रवचनसार" की गाथा सं० २३८ का साम्य, पउमचरियं (गा. १२०. १७७) एवं तित्थोगाली (गा. १२१३ ) में प्राप्त है । " रयणसार" की गाथा १०६ के समान सावयधम्मदोहा का दोहा नं० ७९ है । दोनों में उत्तम पात्रों के प्रकारों का वर्णन है । बारस अनुप्रेक्षा की गाथा संख्या ३५ सर्वार्थसिद्धी और जीवकाण्ड (गा. ८९ ) में प्राप्त है त्रिलोकसार की ४६३ वीं गाथा बारस अनुप्रेक्षा की गाथा संख्या ४९ के समान है । ऐसे अन्य कई संदर्भ भी प्रयत्न करने पर खोजे जा सकते हैं । ५६ Jain Education International उपर्युक्त विवरण से प्रतीत होता गाथाओं, विचारों के प्रस्तुतिकरण आदि से रहे हैं । उन्होंने कुन्दकुन्द के साहित्य और प्रदान की है । किन्तु आश्चर्य है कि इन आठ-नौ सौ वर्षों में किसी जैनाचार्य है कि आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थों, परवर्ती जैन आचार्य प्रभावित होते चिन्तन को अपनी शैली में गति For Private & Personal Use Only तुलसी प्रज्ञा www.jainelibrary.org
SR No.524576
Book TitleTulsi Prajna 1993 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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