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________________ (१) धौभ्य | (२) उत्पाद | (३) व्यय । मूल अस्तित्व है परमाणु । चाहे वह आत्मिक हो अथवा पौद्गलिक । परमाणु के पर्याय सूक्ष्म और स्थूल दोनों प्रकार के होते हैं । वैज्ञानिक जगत् में पौद्गलिक परमाणु की खोज हुई है । आत्मिक परमाणु उसके सूक्ष्म यन्त्रों का विषय नहीं बना । ज्ञानात्मक शक्ति मनुष्य के पास जानने का मुख्य साधन है इन्द्रियां । इन्द्रियां शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श का ज्ञान करती हैं, पुद्गल के स्थूल पर्यायों को जानती हैं । मन इन्द्रियों के द्वारा जाने हुए विषयों का विश्लेषण करता है । बुद्धि का सामान्य काम ज्ञान विषय का निश्चय करना है । उसका एक काम अज्ञात विषय को जानना भी है, जिसे औत्पतिकीबुद्धि अथवा प्रतिमा कहा जाता है । हमारे पास जानने के जितने साधन हैं, वे ज्ञेय को साक्षात् जानने में सक्षम नहीं है । हम ज्ञेय को परोक्षत: जानते हैं, इन्द्रिय तथा हेतु के माध्यम से जानते हैं । प्रोफेसर अल्बर्ट आइंस्टीन ने ठीक लिखा है - हम केवल सापेक्ष सत्य ही जान सकते हैं । जो निरपेक्ष सत्य है, वह तो जागतिक द्रष्टा ही जान सकता है । माइक्रोस्कोप, टेलीस्कोप आदि यन्त्र भी जानने के माध्यम हैं, स्वयं जानने के माध्यम हैं, स्वयं जानने वाले नहीं। जो जानने वाला है, वह इनके माध्यम से ही ससीम सत्य को जान सकता है, असीम या निरपेक्ष ( absolute ) सत्य को नहीं जान सकता । अध्यात्म विद्या के अनुसार अतीन्द्रिय चेतना का विकास होने पर ही ज्ञाता निरपेक्ष सत्य को जान सकता है। आज का विज्ञान भी अतीन्द्रिय चेतना के द्वार में प्रवेश कर रहा है | स्नायविक मनोविज्ञान के प्राध्यापक डॉ० कालगारिस का कहना है- “यदि त्वचा के ऊपर कतिपय स्थान विशेषों को विक्षेपित किया जाए तो व्यक्ति को इन्द्रियातीत अनुभूति प्राप्त हो जाती है और वह उन सब वस्तुओं को देख सकता है, जिन्हें वह पहले नहीं देख सकता था । अध्यात्म विद्या के अनुसार अतीन्द्रिय ज्ञान शरीर के एक भाग से भी हो सकता है और सम्पूर्ण शरीर से भी हो सकता है । अतीन्द्रिय ज्ञान के विकास के साधन सूत्र ये हैं २ (१) स्थूल शरीर और स्थूल मन को निष्क्रिय करना । (२) सूक्ष्म शरीर और सूक्ष्म चेतना को सक्रिय करना । (३) भावधारा को प्रशस्त करना । Jain Education International For Private & Personal Use Only तुलसी प्रज्ञा www.jainelibrary.org
SR No.524575
Book TitleTulsi Prajna 1993 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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