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________________ (४) विचार एवं संवेदन का नियंत्रण करना। मस्तिष्क विद्या के अनुसार मस्तिष्क का दायां भाग अचेतन और अर्धचेतन क्रियाकलापों से संबंधित है। इसमें अतीत ज्ञान और प्रज्ञा के केन्द्र होते हैं। इसे कलेक्टिव अनकान्शियस कहा जाता है। चेतना और मस्तिष्क ___ अध्यात्म के आचार्यों ने चेतना के विभिन्न स्तरों और उनके कार्यकलापों का गहराई से अध्ययन किया। वैज्ञानिक, मस्तिष्क के विभिन्न स्तरों और उसके कार्यकलापों का गहराई से अध्ययन कर रहे हैं । इसकी नितांत अपेक्षा है कि आज का आध्यात्मिक व्यक्ति मस्तिष्क विद्या के सूक्ष्म रहस्यों का अध्ययन करे और वैज्ञानिक चेतना के सूक्ष्म रहस्यों का अध्ययन करे । यह अध्ययन अनेक मानवीय समस्याओं का समाधान का सूत्र बन सकता महर्षि अरविन्द के मतानुसार मानव आध्यात्मिक चेतना के विकास द्वारा अतिमानव बन सकता है । गुरजिएफ भी ऐसा ही मत प्रकट करते थे। उनके शिष्य पी० डी० औएकी ने इसके समर्थन में "एक न्यू मॉडल ऑफ द यूनिवर्स' नामक पुस्तक लिखी है। नए मनुष्य का निर्माण नए समाज का निर्माण और नए विश्व का निर्माण-ये स्वर बतला रहे हैं कि वर्तमान मनुष्य, समाज और विश्व अतिमानव का निर्माण करने में सक्षम नहीं हैं। उसकी अक्षमता का हेतु यह है कि यह अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय को मूल्य नहीं दे रहा है । विज्ञान के पास वे प्रयोग नहीं है जिनसे मनुष्य की चेतना का रूपांतरण किया जा सके, मानव को अतिमानव बनाया जा सके । अध्यात्म के पास मस्तिष्क को पढ़ने की वे पद्धतियां नहीं हैं जिनसे वह मस्तिष्क में विद्यमान चेतना के संवादी कोष्ठों और उनके क्रियाकलापों को पहचान सके । भर्तृहरि ने लिखा--- आहार निद्राभयमैथुनानि, सामान्यमेतद् प्रशुभिर्नराणाम् । धर्मो हि तेषामधिको विशेषो, धर्मेण होना पशुभिसमाना ॥ भगवान महावीर ने बताया--आहार, भय, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, लोक और मोह-ये दस संज्ञाएं पेड़-पौधों से लेकर मनुष्य तक सभी प्राणियों में होती है। भर्तृहरि का प्रश्न अध्यात्म के मनीषियों को उद्वेलित करता रहा । मनुष्य और पशु के मध्य भेदरेखा क्या है ? उन्होंने अपनी ओर से समाधान दिया-धर्म मनुष्य को पशु से पृथक् करता है। मस्तिष्क विद्या के वैज्ञानिकों ने इस प्रश्न का जितना सटीक उत्तर दिया है उतनी स्पष्टोक्ति प्राचीन व्याख्या ग्रंथों में उपलब्ध नहीं है। मस्तिष्क की तीन परते हैं। खंड १८, अंक १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524575
Book TitleTulsi Prajna 1993 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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