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________________ अध्यात्म और विज्ञान – युवाचार्य महाप्रज्ञ स्वयं सत्य खोजो, सबके साथ मैत्री करो, यह अध्यात्म का आधारभूत सूत्र है। सत्य की खोज का अर्थ है अस्तित्व की खोज, सार्वभौम नियमों की खोज । विज्ञान का उद्देश्य है सत्य की खोज। उद्देश्य के बिन्दु पर अध्यात्म और विज्ञान भिन्न नहीं है। महावीर के शब्दों में अहिंसा विज्ञान है। यह सार्वभौम नियम है । किसी भी देश और काल तथा किसी भी व्यक्ति में रागद्वेष मुक्त चेतना का क्षण आता है, अहिंसा घटित हो जाती है। अध्यात्म के आचार्यों ने आत्मा और अध्यात्म-दोनों के अस्तित्व और सार्वभौम नियमों का अध्ययन किया है, आत्मा और अनात्मा में विद्यमान भेद और अभेद को समझने का प्रयत्न किया है तथा अनात्मा (पुद्गल) से मुक्त आत्मा के स्वरूप को उपलब्ध करने का प्रयत्न किया है। वैज्ञानिकों ने पौद्गलिक जगत या भौतिक जगत् का अध्ययन किया है, उनमें होने वाले परिवर्तनों को समझने का तथा उन्हें विविध रूपों में बदलने का प्रयत्न किया अध्यात्म और विज्ञान में यदि हम भेदरेखा खींचना चाहें तो वह हैअध्यात्म का केन्द्रीय तत्व है आत्मा और विज्ञान का केन्द्रीय तत्व है भौतिक या पौदगलिक जगत् । स्थूल सत्य और सूक्ष्म सत्य अध्यात्म विद्या के अनुसार आत्मा के परमाणु (प्रदेश) अमूर्त है। जो अमूर्त है वह सूक्ष्मतम होता है । पौद्गलिक परमाणु मूर्त है और सूक्ष्मतम अस्तित्व के दो रूप होते हैं-स्थिर और अस्थिर । स्थिर रूप ध्रव होता है, वह कभी नहीं बदलता है । उसका अस्थिर रूप बदलता है, परिणमन और पर्याय होते हैं।' इस सिद्धांत के आधार पर अस्तित्व के तीन रूप बन जाते हैं१. भगवती-"थिरे पलोट्टई अथिरे नो पलोट्टई'। खंड १८ अंक १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524575
Book TitleTulsi Prajna 1993 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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