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किसी बाहरी शक्ति के हस्तक्षेप का भय न हो ऐसा राज्य " एकछत्र राज्य" कहलाता था । २२ इस प्रकार एकछत्र राज्य साम्राज्यवादी प्रवृति का सूचक था ।
राज्य परिषद
जिनसेन के विवरण से प्रतीत होता है कि राजा पूर्णतया निरंकुश था । किन्तु वास्तविक स्थिति इसके विपरीत थी । राजा देश की परम्पराओं और कानूनों (नीति) से नियंत्रित होता था । इसके अलावा परिषद भी उसे निरंकुश होने से रोकती थी । हरिवंश पुराण में हमें राज्य परिषद और राजसभा आदि शब्द मिलते है । २४ इसके अलावा विभिन्न अवसरों पर मन्त्रियों की भी चर्चा की गई है । राजा जब मन्त्रियों के साथ विचार-विमर्श करता तो वह परिषद कहलाती थी । किन्तु जब वह मन्त्रियों तथा उच्च अधिकारियों के साथ सामूहिक विचार-विमर्श करता तो वह राजसभा कहलाती थी । परिषद एक प्राचीन संस्था थी जिसका प्राचीन साहित्य में विस्तृत विवरण मिलता है । सम्भवतः राज परिषद में महामन्त्री ( प्रधानमंत्री ) पुरोहित और साधारण मंत्री सदस्य होते थे। कई बार ऐसे अवसर भी आते थे जब राजा मन्त्रियों के निर्णय को अस्वीकार कर देता था । लेकिन ऐसा बहुत कम असवरों पर ही होता था । २७ मन्त्री मंत्र मार्ग, तर्कशास्त्र एवं राजनीति के ज्ञाता होते थे । २८
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जब राजा किसी मन्त्री के कार्य से प्रसन्न होता तो वह उसे वरदान मांगने के लिये कहता । मंत्री उस वरदान (अवसर) को राजा के पास भविष्य में मांगने हेतु सुरक्षित रख सकता था ।" राज सभा में मन्त्रणा के समय वेद मन्त्रों का भी उच्चारण किया जाता था ।" पड़ौसी राज्यों के राजदूत राजा से मुलाकात राजसभा में ही करते । दूत के लिये यह आवश्यक था कि वह राजा से अपनी मर्यादा में रहकर ही वार्तालाप करे । 19
सैनिक व्यवस्था
आचार्य जिनसेन ने हरिवंश पुराण के माध्यम से प्राचीन भारत में सैनिक व्यवस्था का विस्तृत विवेचन किया है। उन्होंने प्राचीन शस्त्रों एवं युद्ध पद्धतियों की भी सूक्ष्म जानकारी प्रदान की है ! युद्ध के समय राजा सेना का नेतृत्व करता था । सेनापति युद्ध में राजा की सैनिक की तरह सहायता करते । हरिवंश पुराण में दण्डरत्न, अयोध्य और द्रुतसेन आदि सेनापतियों के नाम मिलते हैं। युद्ध में उच्चकोटि का रणकौशल दिखलाने वाले वीरों की कमी नहीं थी । महारथी भी युद्ध में राजा को सहयोग करते थे । " चतुरंगिणी सैनिक व्यवस्था अभी भी विद्यमान थी ।" इस प्रकार हस्तिसेना, अश्वसेना, रथसेना और पैदल सेना, सेना के आवश्यक अंग थे । चक्रवर्ती शासक की सेना चक्रवर्ती सेना कहलाती थी । " जिनसेन ने दो घोड़ों वाले रथ का विशेष रूप से उल्लेख किया है । " शासकों के पास अक्षोहिणी, अर्थ अक्षोहिणी और चौथाई अक्षोहिणी सेना होती थी। जिस सेना में १००० हाथी, १ लाख रथ, १ करोड़ घोडे, १०० करोड़ पैदल सैनिक हो वह अक्षोणी सेना कहलाती थी । अर्ध अक्षोहिणी एवं चौथाई अक्षोहिणी सेना भी उपर्युक्त अनुपात से ही बनती थी ।" एक विवरण के अनुसार रथसेना का प्रधान महारथी कहलाता था ।
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खंड १८, अंक ४
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