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________________ युद्ध के समय राजा सेना का नेतृत्व करते थे। युद्धोपरान्त शत्रु से सन्धि करने का अधिकार राजा को ही प्राप्त था। जिनसेन के अनुसार शासक राजा, महाराजा, महाराजाधिराज, और चक्रवर्ती आदि उपाधियां धारण किया करते थे। ये सभी विरूद उसकी शक्ति के प्रतीक थे। राजा की उपाधियों में चक्रवर्ती की कल्पना हिन्दू धर्म में आदर्श शासक के लिये की गई है । यह उपाधि प्रशासन के केन्द्रीयकरण की प्रतीक थी ।१२ वायु पुराण के अनुसार चक्रवर्ती सम्राट विष्णु के अवतार होते हैं । वे हर युग में अवतरित होते हैं । वे भूतकाल में भी पैदा हुए थे और भविष्य में भी पैदा होंगे। कौटिल्य की मान्यता है कि जो शासक धर्म विजय से सार्वभौम सत्ता प्राप्त करता है, वह चक्रवर्ती कहलाता है।४ चक्रवर्ती की कल्पना बौद्ध साहित्य में भी मिलती है। दीघ निकाय में कहा गया है कि चक्रवर्ती धार्मिक राजा, चारों दिशाओं के विजेता.........."सागर पर्यन्त पृथ्वी को बिना दण्ड के, बिना शस्त्र के धर्म द्वारा जीतकर उस पर शासन करता है। स्वयं बुद्ध अपनी तुलना चक्रवर्ती सम्राट से करते थे ।१६ जैन धर्म में भी चक्रवर्ती-आदर्श का उल्लेख मिलता है । इसमें चक्रवर्ती की कल्पना कभी राजा के रूप में तो कभी तीर्थंकर के रूप में की गई । जो कि बौद्ध धर्म के समान है। जिनसेन अनुसार भरत चक्रवर्ती वृषभनाथ के समय, सगर चक्रवर्ती अजितनाथ के समय तथा मघवा और सन्तकुमार ये दो चक्रवर्ती धर्मनाथ और शान्तिनाथ के अन्तराल में हुए । शान्ति, कुन्थु और अर ये तीनों स्वयं तीर्थकर तथा चक्रवर्ती हुए। वप्रा, सुवप्रा, महावप्रा, प्रकाशती, गन्धा, सुगन्धा, गन्धिका, गन्धमालिनी, ये आठ देश, पश्चिम विदेह क्षेत्र में नील पर्वत और सितोदा नदी के मध्य स्थित तथा दक्षिणोत्तर क्षेत्र चक्रवर्ती क्षेत्र कहलाते हैं अर्थात् इनमें चक्रवतियों का निवास रहा है।" राज्य में राजा सर्वशक्तिमान था लेकिन यदि वह दुष्ट कर्म करता तो प्रजा उसे राज्य से बाहर खदेड़ देती थी। जिनसेन लिखता है कि यदि राजा दुष्टता की अति कर देता तो उसे प्रजा के हाथों प्राणों से हाथ धोना पड़ता था।" इस प्रकार जिनसेन के ये विचार राजा की उत्पत्ति के देवत्व सिद्धांत विरोधी प्रतीत होते हैं । राजा प्रशासन कार्य परिषद या राज सभा के सदस्यों की सहायता से सम्पन्न करता था। वह न्यायिक क्षेत्र का भी प्रधान था । . राजा विवाह हेतु स्वयंवरों में भी भाग लेता रहता था। सम्भवत: उसके अनेक रानियां होती थीं । जिनसेन ने लिखा है कि राजा सिंहासन पर आरूढ़ होता, दिव्य लेपन करता, सुकोमल वस्त्र पहिनता, पान चबाता, और सुगन्धित माला को धारण करता था। जिनसेन ने राजा के शारीरिक लक्षणों के सम्बन्ध में लिखा है कि राजा के हाथ स्थूल, सम और हाथी की सूण्ड के समान लम्बे हों। उसकी गर्दन शंख समान, नाभि कमल की कणिका की तरह और कमर, सिह की कमर समान पतली हो। जिसके कलाई से लेकर हथेली तक तीन रेखाएं होती है, वह राजा होता है ।२१ __ वह राज्य, जिसमें समृद्धि हो, शान्ति हो, प्रजा को कष्ट न हों, उपद्रव न हो, ३१० तुलसी प्रला
SR No.524574
Book TitleTulsi Prajna 1993 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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