SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'अलंक्रियतेऽनेन इति अलंकारः ।' अलंकार विहीन सरस्वती विधवा की तरह सुशोभित , नहीं होती है। इसीलिए आचार्यों ने काव्य-धर्मिता में अलंकारों को विशेष महत्त्व दिया है। विवेच्य काव्य में अनेक सुन्दरों, अलंकार का विनियोजन हुआ है । सूक्तिमूलक अर्थान्तरन्यास के प्रयोग में कवि सिद्धहस्त है। श्लेष, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, व्यतिरेक, उदात्त, परिकर, दृष्टान्त, विनोक्ति, पर्याय, कारणमाला, विशेषोक्ति आदि का सुन्दर निरूपण हुआ है । कुछ अलंकारों का उदाहरण द्रष्टव्य है . उपमा इतश्चदन्ति प्रवरेण शुण्डा दण्डं समुत्पाटयतोपयातम् । .. तदेभशिक्षाप्रवणेन राजा, सस्तम्भितस्तत्त्वविदेव वादी ॥४९ यहां पर राजा की उपमा तत्त्वविद् से तथा हाथी की उपमा वादी से दी है। प्रस्तुत उपमान विनियोजन से लक्षित होता है कि कवि अवश्य ही तत्त्वविद् है । शास्त्रीय उपमा का सुन्दर निदर्शन। कि हन्यतेऽस्मत्प्रभुरेष एवा स्माभिः कृतघ्नरिति चिन्तयाः । मुक्तो गतो दूरतरं यथात्मा, लोकान्तमुद्गच्छति कर्ममुक्तः ॥ बधिकों से मुक्त राजा (रत्ना के पिता) वैसे ही बहुत दूर चला गया जैसे कर्म मुक्त आत्मा लोकान्तर में चली जाती है। राजा की उपमा कर्म मुक्त आत्मा से तथा बधिकों की कर्म से दी गई है। मूर्त उपमेय के लिए अमूर्त उपमान का विनियोजन सफल कविमिता का उदाहरण है : विचार गर्भा धिषणालसाऽभूद्, ___ मेधाविनो गर्भवती मृगोव । तेनैव संकल्प विहारणीयं, न निश्चयाऽध्वानमुपैतुमर्हा ॥ यहां पर विचार मग्न राजा की मन्द बुद्धि की उपमा गर्भवती मृगी से दी अर्थान्तरन्यास सामान्य के विशेष के साथ अथवा विशेष का सामान्य के साथ समर्थन करना अर्थान्तरन्यास है। कथित अर्थ की सिद्धि के लिए अन्य अर्थ के न्यास को अर्थान्तरन्याम कहते हैं । विवेच्य काव्य में अनेक स्थलों पर इस अलंकार का विनियोग हुआ है। उदाहरण --- .... तुलसी प्रज्ञा
SR No.524574
Book TitleTulsi Prajna 1993 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy