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________________ निर्वाणमार्गी होना कवि के निज-जीवन का वैशिष्ट्य है । 'रत्नपालचरित' के पात्रों को दो श्रेणियों में रख सकते हैं : :- १. मानवीय, २. प्रकृति जगत् से सम्बद्ध (जिनका कवि ने मानवीकरण किया है) महाकवि महाप्रज्ञ की विस्तृत चेतना और चिदम्बरीय कल्पना के चूड़ान्त निदर्शन हैं प्रकृति जगत् के पात्र - वृक्ष, रात्री, सरोवर आदि । वृक्षादि के मानवीकरण की कला कवि महाप्रज्ञ को उस मधुमती भूमिका में पहुंचा देती है जहां वाल्मीकि, व्यास, कालिदास, जयदेव, भवभूति आदि प्रतिष्ठित हैं या यह भी कह सकते हैं कि महाकवि साधना और समाधि के बल पर वहां पहुंचा हुआ दिखाई पड़ता है जहां व्यक्ति जड़-चेतन विभेद में कृपण हो जाता है । अस्तु । मानवीय पात्रों में राजा रत्नपाल, युवति कुमारी रत्नवती, मंत्री, चन्द्रकीर्तिचन्द्रकांता, सुकोशा आदि प्रमुख हैं । रत्नपाल विवेच्य काव्य का नायक है : : - रत्नपाल । वह धीरोदात्त श्रेणी में प्रतिष्ठित है । नायक - चरित्र के माध्यम से कवि ने संसारचारक में फंसे जीवों के लिए कल्याणमार्ग का निरूपण किया है । विवेच्य काव्य में रत्नपाल के जीवन से सम्बद्ध विविध अवस्थाओं का चित्रण मिलता है । बालक, युवक, प्रजावत्सल राजा, स्पर्धाभावयुक्तस्वाभिमानी राजा, भव्य और अन्त में मुनि के रूप में उसका दर्शन होता है । तृतीय सर्ग में सचिव रत्नवती से अपने राजा की वार्ता बताने के क्रम में उसके तीन रूपों ( अवस्थाओं) का प्रतिपादन करता है । ये बालक, युवक और प्रजावत्सल राजा । बालक शक्रपुर के राजा चन्द्रकीर्ति और महिषी चन्द्रकान्ता ने एक पुत्र को जन्म दिया । गर्भावस्था के समय स्वप्न में दृष्ट रत्नराशि के समान सुन्दर होने के कारण पुत्र का नाम रत्नपाल रखा गया । वह इतना सुन्दर था जिसके कारण स्त्रियां उसे क्षण भर भी नहीं छोड़ती थी । उसके कला-कलाप को देखकर चन्द्रमा की भी नींद उड़ गयी :-- कलाकलापं समवेक्ष्य तस्य, चन्द्रस्ततन्द्रो भ्रमति ह्यषापि । २९८ कलानिधित्वे प्रथमोऽयमर्थ्यो રા स्म्यहं द्वितीयस्त्विति चिन्तया ॥ २३ युवावस्था कुमारावस्था को पार कर वह युवावस्था में प्रवेश करता है । कोशलराज की पुत्री सुकोशा के साथ उसका परिणय-संस्कार सम्पन्न होता है । उचित समय में राजा ने उसका राज्याभिषेक कर दिया । प्रजावत्सल वह प्रजानुरज्जक राजा सिद्ध हुआ । ऐसे कुल, शील, वीर्य एवं सदाचार सम्पन्न तुलसी प्रज्ञा
SR No.524574
Book TitleTulsi Prajna 1993 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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