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विवेचन अपेक्षित है। संवाद
संवाद या कथोपकथन काव्य-सौष्ठव संवर्धन में सहायक होते हैं। संवाद से काव्य में निरसता का निरसन होकर नाटकवत् रोमांचकता, सम्प्रेषणीयता प्रभावोत्पादकता, अभिव्यञ्जनचारूता आदि गुणों का सहज-समावेश हो जाता है ।
____ कथोपकथन में काव्य-पात्रों का चरित्र दर्पणवत् प्रतिबिम्बित होता है। किसी पात्र के चरित्रगत गुण-दोषों की जानकारी संवाद से ही होती है। जैसे कालिदास के दिलीप और सिंह संवाद द्वारा राजा की उत्कृष्टता एवं क्षत्रिय-धर्म की उदात्तता का प्रतिपादन हुआ है। सिंह के प्रति उत्तर में दिलोप अपने यशः शरीर की संरक्षा की प्रार्थना करते हुए कहता है :-- किमयहिस्यस्तव चेन्मतोऽहं,
यशः शरीरे भव मे दयालु ॥ काव्य में संवादों का महत्त्व इसलिए भी है कि काव्य की घटनाए पात्रों के संवादों में अधिक विकसित होती है।
विवेच्य काव्य में अनेक सुन्दर संवाद अनुस्यूत हैं । प्रथम सर्ग में, राजा-सभासद एवं राजा-वृक्ष संवाद निहित हैं। सभासदों के साथ वार्तालाप क्रम में यह उभर कर सामने आता है कि देशाटन के बिना प्रसिद्धि नहीं होती है :
ख्यातिनस्यात् कलास्थानं,
प्रदेशभ्रमणं विना। राजा वृक्ष संवाद लगभग ७ श्लोकों में निबद्ध है। इसमें वृक्षों का मानवीकरण किया गया है । वृक्ष जड़ नहीं चेतन होते हैं. मूक नहीं मुकर होते हैंइस तथ्य का प्रतिपादन प्रस्तुत संवाद में किया गया है । वृक्ष कहते हैं :-- चित्रं तदेतत् तव सूनवो पि,
ह्याजन्ममृत्योस्त्वदुपेक्षिताश्च । छायां त्यजामो न तवाग्रतोऽपि,
- संतोषभाजां महिमा ह्यगम्यः ॥ प्रस्तुत प्रसंग के निरूपण में विवेच्य कवि महाकवि कालिदास के प्रकृति-प्रसंगों के निकट दिखाई पड़ रहा है । यहां वृक्षों की उदारता एवं परोपकारिता का उद्घाटन हुआ है।
द्वितीय सर्ग में राजा और युवति का संवाद निविष्ट है ।" प्रस्तुत संवाद में राजा के प्रति युवति के आकर्षण का कारण एवं युवति की पूर्वकथा कथोत्प्ररोह शिल्प में निरूपित है । अत्यन्त प्रेमिल वातावरण में इस संवाद का प्रारम्भ होता है। हंसती बाला अपने परिचय प्रसंग में ज्योतिर्विदों द्वारा कृत भविष्यवाणी को कहती है :--
भूपाल ! भूमी किल रत्नगर्भा,
रत्नान्यनेकानि यतः प्रसूते । तन्मध्यगंस्यैकमणेः प्रकाशो,
प्रकाशयत् त्वां मम भाग्यचान्द्रम् ॥२ .
तुलसी प्रज्ञा