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करोति नित्यं परिक्रमां कारणमत्र कि मो.' रूप स्पर्धा एवं जिज्ञासा के साथ राजा . रत्नपाल राज्यसभा में उपस्थित होता है। सभी ने अपने ढंग से उत्तर दिया। सभासदों ने कहा-उल्लू की अप्रसन्नता का कारणजानने के लिए (१.७) कमल में बंद भ्रमरों की मुक्ति के लिए (१.८) अंधकार-विनाशार्थ (१.९) और देशाटन के विना प्रसिद्धि नहीं होती है (१.१०), इसलिए सूर्य परिक्रमा करता है। राजा अन्तिम सभासद के तर्क से प्रभावित होकर देशाटन के लिए निकल जाता है। जंगल में घूमते हुए प्रसन्न होता है। अचानक एक स्वर्गीया अगोचर-युवति उसके गले में माला डालकर स्तुति करती है। राजा आश्चयित होता है। उसके बाद वृक्ष तडागादि प्राकृतिक... मानवों से राजा का वार्तालाप होता है। सरोवर की प्रसन्नता एवं 'देवासहायाः कृतिनां भवन्ति' (भाग्यशाली व्यक्ति को देव भी सहायक होते हैं) सूक्ति के साथ सर्ग समाप्त हो जाता है।
सरोवर में स्नान-प्रसंग से द्वितीय सर्ग प्रारंभ होता है। राजा सरोवर में स्नान कर जब बाहर आता है तो एक युवति की आवाज सुनायी पड़ती है, जो माला डालने वाली युवति की सखी थी। जैसे ही राजा अपने प्रति प्रेम के कारण को जानने की जिज्ञासा करता है तभी वह माला डालने वाली युवति हंसती हुई आकर अपना परिचय देती है। परिचय क्रम में बताती है कि मेरे मामा ने निर्दयतापूर्वक मेरे राज्य को अपहृत कर एवं पिता को पकड़कर बधिकों को मारने की आज्ञा दे दी थी, लेकिन बधिकों ने दयावश मेरे पिता को छोड़ दिया। छूटकर पिता वैसे ही भाग गए जैसे कर्म-मुक्त आत्मा लोकान्तर को चली जाती है। वह समय मेरे पिता के लिए दुर्भर हो गया । बाद में विश्वासपात्र गुप्तचरों की सहायता से मेरी मां काफी धन लेकर पिता के पास पहुंच गयीं, जैसे शांति को साथ लेकर ज्योत्स्ना चन्द्रमा के पास पहुंच जाती है । ज्योतिषियों से सुना कि तुम मेरे भाग्य के स्वामी होवोगे, इसीलिए पहले तुमने बिजली की तरह मेरी सखी को देखा और अब मैं मेघमाला की तरह दर्शनीय हूं।
रत्नपाल ने अपने आत्म-विद्याबल से उसके राज्य को जीतकर उसको वापस कर दिया । तदनन्तर उसे जाति -स्मृति ज्ञान की प्राप्ति होती है। श्रीपत्तन के राजा के द्वारा उसके वृतान्त पूछे जाने पर वह एक गरीब-ब्राह्मण की कथा कहता है जो वसन्तपुर का निवासी था । एक मुनि द्वारा प्रदत्त महामंत्र के जाप के प्रभाव से वही दरिद्र ब्राह्मण रत्नपाल के रूप में उत्पन्न हुआ।
राजा और रात्री के संवाद से तृतीय सर्ग का प्रारम्भ होता है। रात्री अंधकार के कारण संसार में कायरता एवं पापादि को संवद्धित करती है ---ऐसा राजा के द्वारा कथन करने पर वह अपने शुद्ध स्वरूप की चर्चा करती है। मैं परोपकार के लिए ही नियत समय पर आती हूं और जाती हूं। रात्री के अन्धकार को लोग दीप जलाकर दूर करना चाहते हैं परन्तु मन के अन्धकार को क्यों नहीं दूर करते हैं। उसके बाद रात्री के कथन से प्रसन्न होकर राजा अनिश्चित पथ से आगे बढ़ जाता है ।
अपने पास राजा को न पाकर राजकुमारी और रत्नपाल के बाहर गए हुए बहुत
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तुलसी प्रज्ञा