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लिखित प्रति है। ८. चरणव्यूह और शाकल गृह्यसूत्र के अनुसार ऋग्वेद की छन्द पाद संख्या ४०१००
होती है। बाष्कल शाखा में १०५८१ मंत्र और शाकल शाखा में १०४१७ मंत्र संख्या बनाई गई है।
--वेवर की इण्डिस स्टडीज (३.२५६ और १०.१३३) ९. सायणाचार्य का भाष्य-माधवीय वेदार्थ प्रकाश १३वीं सदी विक्रमी के अन्तिम
चरण में लिखा गया था। खिल भाग बम्बई से क्रमशः सन् १८७७, १८९१ भऔर शक सं० १८१०-१२ में प्रकाशित तीनों संस्करणों में भी प्रकाशित है। सातवलेकर के संस्करण में ३६ खिल हैं। मेक्समूलर ने ३२ और ऑफेच्त (Aufrecht) ने २५ खिल प्रकाशित
किये थे। १०. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के विद्वान् मॉरिश ब्लूमफील्ड ने ऋग्वेद में पुनरुक्त पाद (चरण)
संख्याओं का दोहन किया है और लगभग ८००० पाद (लाईन) पुनरूक्त बताये हैं किन्तु वस्तुत: उनके सिद्धांत अनुसार केवल २४०० पाद ही पुनरुक्त बनते हैं। दुर्भाग्य से ब्यूमफील्ड भारतीय परम्परा से पूर्णतः अनभिज्ञ हैं इसलिए उनका श्रम
निरर्थक अधिक है। ११. मधुच्छन्दः प्रभृतयोऽगस्त्यन्ता आद्यमण्डले ।
ये संति ऋषयस्ते वै सर्वे प्रोक्ताः शचचिनः । इनका निर्वचन इस प्रकार मिलता है--
ददर्शादौ मधुच्छन्दा द्वयधिकं यद् ऋचां शतम् । तत्साहचर्यादन्येपि विज्ञ यास्तु शतचिनः ।।
अच्छत्राश्छत्रिणैकेन यथा ते छत्रियो भवन् ।। इसी प्रकार क्षुद्र सूक्त और महासूक्त की परिभाषा भी बहद्देवता में दी है
दशर्चताया अधिकं महा सूक्त विदुर्बुधाः । इति
एतेन एकर्च प्रभृति दशर्च पर्यन्तं क्षुद्र सूक्तम् । इति १२. वास्तव में जिसका वाक्य वह ऋषि, जिसके लिए कहा गया वह देवता, जितने
अक्षरों में कहा गया उसके अनुसार छन्द बताया गया है। आचार्य शौनक ने सर्वानुक्रमणी में कहा भी है----
___ अर्थेप्सव ऋषयो देवताश्छन्दोभि रूपाधावन् । -कि अपने कथन का अर्थ स्पष्ट हो इसके लिए ही ऋषि, देवता और छन्दों की स्तुति करते हैं। यास्क ने 'निरुक्त' के सातवें अध्याय में भी कहा है
अर्थकाम ऋषिर्यस्यां देवतायामार्थपत्यमिच्छन्,
स्तुतिम् प्रयुङक्त स तत् देवत्यो मन्त्रः । -और 'बृहद् देवता' में कह दिया गया है
ऋषिसूक्तानि यावन्ति सूक्तान्येकस्य वै कृतिः । खंड १८, अंक ४
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