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________________ अत्र संवत्सराः सृष्टा मानुषेण प्रमाणतः । कृतस्य तावद् वक्ष्यामि कालं तञ्च निबोधत ।। सहस्राणां शताब्दाहुश्चतुर्दश हि संख्यया । चत्वारिशंत्सहस्राणि तथाहि कृतं युगम् ॥ तथा शत सहस्राणि वर्षाणि दश संख्यया । अशीतिश्च सहस्राणि कालस्त्रतायुगस्य सः ।। सप्तेव नियुतान्याहुरब्द सहस्रकाणि तु । विंशतिश्च सहस्राणि काल: स द्वापरस्य च ।। तथा शत सहस्राणि वर्षाणां त्रीणि संख्यया । षष्टिश्चैव सहस्राणि कालः कलियुगस्य च ।। एवं चतुर्युगे कालः शून्यैः संध्यांशकः स्मृतः । नियुतान्येव सप्त विंशतिश्चैव भवति वै ।। चत्वारिंशत्तथा त्रीणि नियुतानीह संख्यया । विंशतिश्च सहस्राणि ससंध्यश्च चतुर्युगः ।।' अर्थात् १२००० वर्षों के युग में कृत, त्रेता, द्वापर, कलि—चार भाग होते हैं जिनमें क्रमश: १४४० हजार, १८० हजार, ७२० हजार, ३६० हजार दिन और ७२० हजार दिनों के संध्यांश सहित चतुर्युग में कुल ४३ लाख २० हजार दिन (सहस्रक) होते हैं। ३. ऋग्वेद १०.७२.२ में 'युग' और १.१३९:९ में 'युगान्तर' का विवरण है। विवरण में कहा गया है कि दध्यंच, अंगिरस, प्रियमेध, कण्व, अत्रि आदि ऋषियों को आदि मनु के साथ उनके जन्म का भी स्मरण था। ४. (i) 'ऋचो अक्षरे परमे व्योमन्'-(१.१६४.३२) (i) सहस्राक्षरा परमे व्योमन्'-(१.१६४.४१) ५. ऋग्वेद में सात युग्मछन्दों के अलावा एकपदी, द्विपदी और प्रगाथ के तीन भेद बार्हत, काकुभ और महाबाहत छन्दों के रूप में ६२८ मंत्र भी पठित हैं। ६. ऋग्वेद के १० वें मण्डल का ५८वां सूक्त "मनो जगाम दूरकम्" और "क्षयाय जीवसे" पदों से युक्त है, उसके प्रत्येक मंत्र में ये पद हैं। इसी प्रकार "इंद्रस्येन्दो परिस्रव" और "स जनास इन्द्रः" पद वाले मंत्रों का एक सूक्त है। पहले मण्डल में "वृजनं जीर दानुम्'; दूसरे में "विदथेषु सुवीराः"; तीसरे मण्डल में "सञ्जितं धनानाम्" और चौथे मण्डल में "रथ्यः सदासा" अन्त वाले मंत्रों के सूक्त हैं। ये ऋग्वेद की एकरूपता में प्रमाण हैं । ७. एशियाटिक सोसायटी, कलकत्ता में शांख्यायनी शाखा की प्रति है। तंजावरपुर के सरस्वती महाल ग्रन्थागार में शाकल-बाष्कल पाठ की संपूर्ण प्रति हैं । बनारस में स्कन्द स्वामी के भाष्य वाली प्रति, शाकल और आश्वलायन पाठ की है। इण्डिया ऑफिस लाइब्रेरी, लंदन में भी एक प्रति है । अधूरी प्रतियां अनेकों स्थानों पर हैं किन्तु जैन विश्व भारती संस्थान, लाडनूं के वर्द्धमान ग्रन्थागार में अभी एक सम्पूर्ण प्रति क्रय की गई है जो सदाशिव उपाध्याय पुत्र सखोबा उपनाम पराडकर द्वारा .२८२ तुलसी प्रज्ञा
SR No.524574
Book TitleTulsi Prajna 1993 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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