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________________ -अर्थात् वेद वाक्य ऋषियों की कृति हैं और उसमें देवता और छन्दों का प्रयोग स्पष्टता के लिए किया गया है। १३. वेदों के चार भाग-ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद के अलावा शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, छन्द और ज्योतिष, छह अंग और धर्मशास्त्र, पुराण, मीमांसा और न्याय चार उपांग होते हैं। यह विभाग महर्षि वेद व्यास कृत हैं। महर्षि याज्ञवल्क्य ने इस चतुर्दश विद्या का उल्लेख किया है.पुराण न्याय मीमांसा धर्मशास्त्राङ्गमिश्रिताः । वेदाः स्थानानि विद्यानां धर्मस्य च चतुर्दश ।। १४. वर्द्धमान ग्रन्थागार में सन् १९९१-९२ की खरीद में प्राप्त अष्टक संग्रह की आठ पोथियां । 00 वेद तरू "सोऽयमेको यथा वेदस्तरूस्तेन पृथक्कृतः । चातुर्धाथ ततो जातं वेद पादपकाननम् ॥१५॥ विभेद प्रथमं विप्र ! पैलो ऋग्वेद पादपम् । इन्द्र प्रमितये प्रादाद्वाष्कलाय च संहिते ।।१६।। चतुर्धा स विभेदाथ बाष्कलोऽपि च संहिताम् । बोध्यादिभ्यो ददौ ताचश्च शिष्येभ्यस्स महामुनिः ।।१७।। बोध्याग्निमाढको तद्वद्याज्ञवल्क्यपराशरौ । प्रतिशाखास्तु शाखायास्तस्यास्ते जगृहुर्मुने ॥१८॥ इन्द्र प्रमितिरेकां तु संहितां स्वसुतं ततः । माण्डुकेयं महात्मानं मैत्रेयाध्यापयत्तदा ॥१६॥ तस्य शिष्य प्रशिष्येभ्यः पुत्रशिष्यक्रमाद्ययौ। वेदमित्रस्तु शाकल्यः संहितां तामधीतवान् ॥२०॥ चकार संहिता: पंच शिष्येभ्यः प्रददौ च ताः।" -विष्णुपुराण (अंश ३ अध्याय-४) तुलसी प्रज्ञा
SR No.524574
Book TitleTulsi Prajna 1993 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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