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________________ सन् १९६९ में भारतीय चरित्र कोश मंडल, पुणे से ऋग्वेद का मराठी भाषान्तर प्रकाशित हुआ है । उसमें सूक्त १०२८+१०३ और मंत्र १०५५२ +-१७१६ तथा वर्ग २०२४ दिए हैं । ___वस्तुतः ऋग्वेद सूक्तों का संग्रह है । सूक्त एक ऋषि अथवा एक ऋषि परिवार की कृति है। इन सूक्तों का बहुविध संकलन हुआ है। एक संकलन ऋषि सूक्तों का हुआ जैसे "अग्नि मीळे' से इन्द्रं विश्वा अवीवृधन्' मंत्र तक एक ऋषिसूक्त, ऋषि मधुछन्दसा का है। दूसरा ऋषि-सूक्त जो “इन्द्रं विश्वा अवीवृधन्' आदि आठ ऋचाओं का है, वह मधुछन्दस पुत्र जेता ऋषिपुत्र का है। दूसरा संकलन देवता सूक्तों के रूप हुआ जैसे "अग्नि मीळे पुरोहितम्''....-से अग्नि सूक्त और "वायवायाहि दर्शत" —आदि से वायु सूक्त। तीसरा संकलन छन्द सूक्तों के रूप में हुआ जैसे "अग्नि मीळे पुरोहितम्' से अष्टादश वर्ग पर्यन्त गायन्ति त्वा गाययित्र' - से पूर्व तक का गायत्री छन्दः सूक्त । इसीलिए बृहद्देवता (१.१४) में शौनक कहते हैं--- देवतार्थ छन्देभ्यो वैविध्यं तस्य जायते । पुनः आठ अध्यायों के अष्टकों के रूप में ऋग्वेद का आठ अष्टकों में विभक्तिकरण हुआ जो संभवतः पहला सर्व सम्मत विभागीकरण था। कालान्तर में यज्ञ कर्म के लिए अनुवाक बनें और ८५ अनुवाकों में मंत्रों को विभागीकृत कर दिया गया। यह विभाग सर्वसम्मत न था । पृथक्-पृथक शाखाओं में प्रथक्-प्रथक् अनुवाक संख्या होने का एक संदर्भ तैत्तिरीय आरण्यक में निम्न प्रकार लिखा मिलता है । अस्याः शाखा भेदेन अनुवाक संख्या मेवो वर्तते । तत्र द्राविड रस्याश्चतुषष्टि संख्याकानुवाका: पठ्यन्ते । आन्ध्ररस्याशीत्यनुवाकाः । कर्णाटक श्चतुः सप्तत्यनुवाकाः । अन्यरेकोननवत्य नुवाका: परिषठ्यन्ते ।। अष्टकों में प्रायः १२०० से १३०० ऋचाएं थीं और २०० से ३०० वर्ग; किन्तु अनुवाकों से यह विभागीकरण ऊथल-पुथल (गडमड) हो गया। अन्त में ऋषियों ने ऋग्वेद को अलग-अलग दस मण्डलों में बांध दिया । 'सर्वानुक्रमणिका' में आचार्य शौनक ने कहा है-- य आङ्गिरस: शौनको होत्रो भूत्वा भार्गवः । शौनकोऽभवत्स गत्समदो द्वितीय मण्डलमपश्यविति ।। —कि गृत्समद ने संपूर्ण द्वितीय मण्डल को देखा जबकि वह स्वयं ही वहां अनेक ऋषियों के अलग-अलग सूक्त भी बनाता है। इसलिए यही मान्यता पुरस्करणीय है कि मण्डलों के संकलनकर्ता भी ऋषि ही हैं। आश्वलायन गृह्यसूत्र में लिखा भी है शचिनो माध्यमा गत्समवो विश्वा मित्रो। वामदेवोऽत्रिभरद्वाजो बसिष्ठः प्रगाथाः । पावमान्या: क्षुद्रसूक्ता महासूक्ताः । - अर्थात् प्रथम मण्डल को मधु छन्द से अगस्त्य पर्यन्त १६ ऋषियों ने संग्रह किया । खंड १८ अंक ४
SR No.524574
Book TitleTulsi Prajna 1993 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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